मंगलवार, 12 अगस्त 2025

बाटा कंपनी -जूतों की दुनिया

बाटा कंपनी -जूतों की दुनिया

प्रस्तावना-:

बाटा कंपनी, जूतों की दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई भारतीय अनजान हो। भारत के हर घर में, खासकर मिडिल क्लास परिवारों में 'बाटा' पर भरोसा किया जाता है। यह कंपनी सिर्फ एक ब्रांड नहीं, एक विश्वास है, जिसकी शुरुआत एक छोटे से शहर से हुई और आज यह वैश्विक स्तर पर जूतों, मोजे और टायर तक का कारोबार करती है।

1. कंपनी की शुरुआत और इतिहास

चेकोस्लोवाकिया से सफर

बाटा कंपनी की नींव 1894 में मध्य यूरोप के चेकोस्लोवाकिया (जो आज चेक गणराज्य है) के ज़्लिन शहर में टॉमस बाटा, अन्ना और एंटोनिन बाटा द्वारा रखी गई थी। टॉमस बाटा एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे, जिनका पेशा जूते बनाना था। परिवार के संघर्षों से निकलकर टॉमस ने छोटी फैक्ट्री से अपने कारोबार की शुरुआत की

हालात बिगड़ने पर टॉमस इंग्लैंड गए, मजदूरी की, जूता व्यापार के नए तौर-तरीके सीखे और वापस लौटकर बिजनेस को फिर से खड़ा किया। कंपनी पहला विश्व युद्ध के बाद यूरोप के साथ मिडिल ईस्ट में भी जूते बेचने लगी। उस दौर की आर्थिक मंदी के चलते बाटा ने अपने जूतों के दाम आधे कर दिए और कर्मचारियों को कंपनी के मुनाफे में हिस्सेदारी दी।

जूते के अलावा अन्य उत्पाद

1925 तक बाटा की दुनिया भर में 122 ब्रांच खुल गई थीं। अब कंपनी जूते के साथ-साथ मोजे, टायर और अन्य प्रोडक्ट भी बनाने लगी थी। धीरे-धीरे बाटा ग्रुप में इसका रूपांतरण हो गया।

2. भारत में बाटा का प्रवेश

भारत आने की कहानी

1920 के दशक में टॉमस बाटा ब्रिटिश भारत दौरे पर आए। यहाँ उन्होंने देखा कि अधिकांश लोग नंगे पांव हैं, साथ ही यहाँ रबर, लेदर और मजदूरी सस्ती थी। उन्होंने भारत में कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया और 1931 में 'Bata Shoe Company Private Limited' की स्थापना कोलकाता के पास बातानगर में की। यही भारत का पहला विनिर्माण केंद्र बना।

1930 के दशक में ब्रिटिश सेना के लिए जूते अधिकतर जापान से आयात किए जाते थे, मगर बाटा के आने के बाद भारत में जूता व्यवसाय का नया युग शुरू हुआ।

बाटा नगर -जूतों का शहर

यह बिजनेस चल निकला और बाटा नगर नाम से पूरी कॉलोनी बस गई। मांग इतनी बढ़ी कि हर हफ्ते करीब 4,000 जूते बिकने लगे। कंपनी ने स्थानीय मौसम और जरूरत को समझकर ऐसे जूते बनाए जो भारतीयों के लिए उपयुक्त थे - जैसे कि कैनवास के टेनिस शूज, जिन्हें स्कूलों में पीटी के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

3. कंपनी का विकास और विस्तार

ब्रांड के धरोहर

बाटा ब्रांड ने भारत में लगभग 35% बाजार हिस्सेदारी प्राप्त की है। कंपनी ने देश के तापमान और संस्कृति के अनुसार विभिन्न वेरायटी और स्टाइल के जूते बाजार में उतारे। भारत में 500 से अधिक शहरों में इसकी उपस्थिति है। वर्तमान में 8,000 से अधिक कर्मचारी भारतीय इकाई में कार्यरत हैं और लगभग 1,375 रिटेल आउटलेट हैं। हर साल कंपनी 5 करोड़ से अधिक जूते बेचती है।

अन्य देशों में विस्तार

वैश्विक स्तर पर बाटा के 70 से अधिक देशों में 5,300 स्टोर्स हैं और 30,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। कंपनी ने तीन मुख्य यूनिट्स बनाई हैं – बाटा, बाटा इंडस्ट्रियल्स (सुरक्षा जूते) और एडब्ल्यू लैब (स्पोर्ट्स स्टाइल)।

4. व्यवसाय मॉडल और मार्केटिंग

बाटा का बिजनेस मॉडल बेहद सशक्त है। कंपनी कम कीमत, मजबूत व गुणवत्ता वाले जूते देती है। कर्मचारियों को कंपनी की ग्रोथ में भागीदारी दी जाती थी तथा मुनाफे में हिस्सेदारी का सिस्टम शुरुआती दौर में ही शुरू हो चुका था। मार्केटिंग के लिए बाटा ने “99 पर ख़त्म होने वाले दाम” पेश किए - जैसे कि ₹199, ₹299, जो ग्राहकों का आकर्षण बढ़ाती थी।

आज भी बाटा भारत के साथ-साथ अफ्रीका, एशिया, मिडिल ईस्ट, यूरोप, अमेरिका आदि बाजारों में मजबूत ब्रांड के रूप में स्थापित है।

फ्रेंचाइजी मॉडल

बाटा का फ्रेंचाइजी मॉडल भी लोकप्रिय है, जिसमें 20-30% तक का प्रॉफिट मार्जिन मिलता है। ब्रांड की लोकप्रियता, बिजनेस सपोर्ट, उत्पाद मांग, ट्रेनिंग, इन्वेंट्री मैनेजमेंट आदि से नया कारोबारियों को फायदा होता है।

5. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव

बाटा ने सालों तक भारत के क्लासरूम की पहचान बने सफेद टेनिस शूज, स्कूल शूज, सैंडल, स्लीपर और ऑफिस शूज देकर देश के हर वर्ग को जोड़ा। ‘बाटा’ आज एक ब्रांड नहीं, एक भरोसा और परंपरा है। भारतीयों ने इसे अपने देशी उत्पाद की तरह अपनाया है।

कई बार लोगों को यह भी समझ नहीं आता कि ये भारतीय कंपनी नहीं है, लेकिन इसकी पहचान भारत में इतनी गहरी है कि यह हर वर्ग की पहली पसंद रही है।

6. चुनौतियां और नवाचार

बाटा के सामने स्थानीय ब्रांड्स जैसे पैरागॉन से प्रतिस्पर्धा की चुनौती आई, लेकिन कंपनी ने नवाचार, मार्केटिंग और प्रोडक्ट क्वालिटी पर ध्यान देकर अपनी स्थिति मजबूत की। टिटनेस से बचाव के लिए जूता पहनने का अभियान भी चलाया गया, जिससे कंपनी की सेल्स बढ़ गई।

कंपनी ने समय के साथ एडिडास और अन्य ब्रांड्स से साझेदारी कर स्पोर्ट्स फुटवियर और स्पोर्ट्सवियर में भी खुद को मजबूत बनाया। मार्केट की जरूरत अनुसार, समय-समय पर अपनी इकाइयों व स्टोर्स को अपग्रेड किया।

7. उत्पाद रेंज

बाटा के पोर्टफोलियो में 20 से ज्यादा ब्रांड हैं – बाटा, नॉर्थ स्टार, बाटा 3डी, कैट, क्लेयर, मैरी आदि। इन ब्रांड्स के तहत सैंडल, फ्लिप-फ्लॉप्स, स्पोर्ट्स शूज, स्कूल शूज, ऑफिस वियर, बूट्स की विशाल रेंज उपलब्ध है।

8. वर्तमान स्थिति और भविष्य की योजनाएं

आज, बाटा का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के लौजेन शहर में है। भारत में, कंपनी सार्वजनिक हो गई है और इसका नाम “बाटा इंडिया लिमिटेड” है। भारत में यह सबसे बड़ा फुटवियर रिटेलर बन चुका है।

कंपनी हर सीजन नए डिज़ाइन और प्रोडक्ट्स बाजार में लाती है। साथ ही डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन सेल्स, स्टोर अपग्रेड और फ्रेंचाइजी नेटवर्क के माध्यम से कंपनी अपना विस्तार कर रही है।

भारतीय बाजार में बाटा की प्रतिस्पर्धा

भारतीय फुटवियर बाजार में बाटा एक प्रमुख कंपनी है, लेकिन इसे मजबूत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। आइए देखें प्रमुख प्रतिस्पर्धी और बाजार की स्थिति: 

प्रमुख प्रतिस्पर्धी कंपनियां

  • Metro Brands:- तेजी से विस्तार कर रही है, मजबूत मार्केटिंग और रिटेल नेटवर्क के साथ
  • Relaxo Footwears:- किफायती और बड़े वॉल्यूम वाले प्रोडक्ट्स के लिए लोकप्रिय
  • Campus Activewear:-युवा पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए स्पोर्ट्स और कैज़ुअल फुटवियर में फोकस.
  • Liberty Shoes, Red Tape, Khadim India, Lehar Footwears, Sreeleathers:- अलग-अलग सेगमेंट्स में सक्रिय, ब्रांड पहचान और मूल्य-निर्धारण के माध्यम से प्रतिस्पर्धा कर रहे 

निष्कर्ष

बाटा कंपनी की शुरुआत एक साधारण, गरीब परिवार के संघर्ष से हुई थी। आज यह न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर में फुटवियर इंडस्ट्री की अग्रणी कंपनी है। इसके किसी स्टोर पर जाने वाले लाखों ग्राहक ही बाटा की सफलता की कहानी हैं। अपने कर्मचारियों को हिस्सा देना, कम कीमत में अच्छा उत्पाद देना, लोकल मार्केट की जरूरतें समझकर प्रोडक्ट डिजाइन करना,यही बाटा की सफलता का मूल मंत्र है।

बाटा भारतीय नहीं है, लेकिन हर भारतीय के दिल में है। इसकी कहानी एक आदर्श है कि सच्चे नवाचार, दृढ़ मेहनत और ग्राहक-केन्द्रित दृष्टिकोण से कैसे कोई ब्रांड, एक देश की पहचान बन जाता है।

सोमवार, 11 अगस्त 2025

Sri Prakash Lohia

श्री प्रकाश लोहिया-: एक असाधारण औद्योगिक जगत के शिखर पुरुष


परिचय-: आरंभिक जीवन और शिक्षा

श्री प्रकाश लोहिया का जन्म 11 अगस्त 1952 को कोलकाता (भारत) में हुआ था। उनके पिता श्री मोहन लाल लोहिया एक व्यापारी थे। परिवार के शुरुआती वर्षों में लोहिया जी की शिक्षा कोलकाता और दिल्ली में हुई। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से वाणिज्य (कॉमर्स) की पढ़ाई पूरी की। यही शिक्षा उनके भविष्य की औद्योगिक यात्रा का आधार बनी!

इंडोनेशिया की ओर यात्रा

सिर्फ 19 वर्ष की उम्र में, वर्ष 1973 में, श्री प्रकाश लोहिया अपने पिता के साथ इंडोनेशिया चले गए। यह निर्णय उनके जीवन की दिशा बदलने वाला था। उस समय इंडोनेशिया सैन्य शासन के तहत था और व्यावसायिक अवसर सीमित थे। लेकिन लोहिया जी ने हिम्मत नहीं हारी और अपने पिता के साथ मिलकर इंडोरामा सिंथेटिक्स कंपनी की स्थापना की!

 इंडोरामा कॉरपोरेशन का निर्माण

श्री प्रकाश लोहिया एक मध्यम वर्गीय परिवार से आते थे। उनके पिता ने 1973 में इंडोरमा कंपनी की शुरुआत की थी, और उन्होंने इस व्यवसाय को विस्तार देकर इंडोनेशिया में सिंथेटिक उत्पादों के लिए प्रमुख कच्चा माल बनाने वाली कंपनी बनाया। उनके भाई भी इस व्यवसाय में अलग-अलग देशों में सक्रिय हैं। उन्होंने नाईजीरिया में भी पिछले कुछ दशकों में एक बड़ी पेट्रोकेमिकल इकाई स्थापित की है। 

1976 में इंडोरामा ने स्पन यार्न (सूती धागा) के उत्पादन से शुरुआत की। कंपाउंडिंग के शुरुआती साल बड़े संघर्षपूर्ण रहे, पर कुछ वर्षों में इंडोरामा ने इंडोनेशिया के सिंथेटिक उत्पादों के लिए जरूरी कच्चा माल बनाने में महारत हासिल कर ली। लोहिया जी की दूरदृष्टि और मेहनत से यह कंपनी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनी और आज इंडोरामा टेक्सटाइल्स और पेट्रोकेमिकल्स का वैश्विक नाम है!

वैश्विक विस्तार और नेतृत्व क्षमता

श्री प्रकाश लोहिया ने इंडोरामा के विस्तार के लिए उज़्बेकिस्तान, थाईलैंड, नाइजीरिया, भारत, अफ्रीका और अन्य देशों तक उसका परिचालन फैलाया। आज इंडोरामा के पास दुनिया भर में 70 से अधिक प्लांट्स हैं और 30,000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं। कंपनी का कारोबार मल्टीनेशनल स्तर पर टेक्सटाइल, पेट्रोकेमिकल्स, फर्टिलाइज़र, सिंथेटिक ग्लव्स आदि क्षेत्रों तक फैल चुका है

परिवार और व्यक्तिगत जीवन

श्री प्रकाश लोहिया का विवाह सीमा मित्तल (स्टील टाइकून लक्ष्मी मित्तल की बहन) से हुआ है। उनके दो बच्चे हैं—अमित और श्रुति लोहिया। अमित लोहिया इंडोरामा कॉरपोरेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं और श्रुति व्यवसाय प्रबंधन की पढ़ाई के बाद सिंगापुर में निवास करती हैं!

 कारोबारी सफलता और योगदान

  •  इंडोरामा निगम का संस्थापन जो आज पेट्रोकेमिकल्स, टेक्सटाइल और फर्टिलाइज़र्स के निर्माताओं में अग्रणी है
  • अफ्रीका में इन्डोरामा एलेमे पेट्रोकेमिकल्स का निर्माण, जो पश्चिम अफ्रीका का सबसे बड़ा उत्पादक है
  • पोलिएस्टर यार्न्स और PET रेज़ीन के क्षेत्र में वैश्विक उत्कृष्टता स्थापित की।

नवाचार और उद्योग जगत में क्रांति

श्री प्रकाश लोहिया ने इंडोरामा के आरएंडडी में भारी निवेश किया और उन्नत टेक्नोलॉजी का सटीक इस्तेमाल किया। इससे कंपनी ने उत्पादकता, गुणवत्ता और सतत विकास की दिशा में अपना स्थान मजबूत किया!

समाजसेवा, कला प्रेम और परोपकार

औद्योगिक जगत में अपार सफलता के बावजूद श्री प्रकाश लोहिया अपने समाजसेवी दृष्टिकोण के लिए भी प्रसिद्ध हैं। वे लोहिया फाउंडेशन और इंडोरामा चैरिटेबल ट्रस्ट के माध्यम से शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक विकास के लिए कार्यरत हैं। इंडोनेशिया में अस्पताल, मेडिकल सेंटर, क्लीनिक, गरीब परिवारों के लिए मुफ्त इलाज जैसी सेवाएं उनकी संस्था देती है

उनका कला प्रेम भी उल्लेखनीय है-विश्वभर की प्राचीन किताबों और रंगीन लिथोग्राफ (चित्र) के संग्रहकर्ता हैं। लोहिया जी के पास दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी लिथोग्राफ संग्रह है, जिसकी डिजिटाइजिंग और साझा करने का कार्य वे करवा रहे, जो 17वीं और 18वीं सदी के दुर्लभ ग्रंथ और पांडुलिपियों से भरा है। 

प्रमुख पुरस्कार और सम्मान

  • भारत सरकार ने 2012 में उन्हें "प्रवासी भारतीय सम्मान" से सम्मानित किया।
  • उनकी गिनती इंडोनेशिया के सबसे धनी व्यक्तियों में होती है-2024 के अनुसार उनकी सम्पत्ति US$8.7 बिलियन आंकी गई है
  • फोर्ब्स एंड एशियन अवार्ड्स में उनके कारोबार और परोपकारी कार्यों के लिए विशेष सम्मान मिला।

उद्यमशीलता और नेतृत्व: प्रेरणा का स्रोत

श्री प्रकाश लोहिया की कहानी भारतीय उद्यमशीलता का प्रेरणादायक उदाहरण है। केवल 19 वर्ष की उम्र में, विदेश के कठिन वातावरण में भी उन्होंने औद्योगिक साम्राज्य खड़ा किया। उनका संतुलित हुनर, नवाचार, परिवार के साथ आपसी सहयोग और समाज के लिए योगदान-युवाओं, प्रवासियों और उद्यमियों के लिए अद्भुत प्रेरणा है!

 निष्कर्ष : श्री प्रकाश लोहिया की विरासत

श्री प्रकाश लोहिया मात्र एक सफल उद्योगपति नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत के गौरव हैं। उनके जीवन से यह प्रमाणित होता है कि आत्मविश्वास, मेहनत, दूरदृष्टि और सामाजिक जिम्मेदारी द्वारा किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है।

उनके द्वारा स्थापित इंडोरामा की सफलता और उनके परोपकारी कार्यों की विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी रहेगी। विश्व स्तर पर भारतीय उद्यमिता, नेतृत्व और मानवता की मिसाल बने श्री प्रकाश लोहिया को शत-शत नमन।




गुरुवार, 7 अगस्त 2025

Today trending topics


भूमिका-:

आज, 7 अगस्त 2025 को भारत के लिए एक ऐतिहासिक दिन है। इस दिन को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस और हरित क्रांति के जनक, पद्म भूषण प्रोफ़ेसर एमएस स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी के रूप में मनाया जा रहा है। साथ ही, बीते वर्ष भारत ने खाद्यान्न उत्पादन में एक नई ऐतिहासिक छलांग लगाई है, जिसने देश को वैश्विक मंच पर गौरवान्वित किया है

प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन: हरित क्रांति के निर्माता-:

-किसान और भारत: 1960 के दशक में जब देश को अकाल और खाद्यान्न संकट का सामना करना पड़ा, तब प्रो. स्वामीनाथन ने उच्च गुणवत्ता वाले गेहूं के बीज और वैज्ञानिक खेती के तरीकों को किसानों तक पहुँचाया।

-ऐतिहासिक योगदान-:

इनके शोध और योगदान से भारत ने अन्न संकट पर विजय पाई और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ा।

भारत की नई उपलब्धि-:खाद्यान्न उत्पादन में ऐतिहासिक उन्नति

2025 में भारत 354 मिलियन टन से भी ज्यादा खाद्यान्न पैदा करने का लक्ष्य पार कर गया है, जो पिछले सभी रिकॉर्ड्स को पीछे छोड़ने वाला होगा।

सरकार का आयोजन-:

प्रो. स्वामीनाथन की जन्म शताब्दी के अवसर पर 7 अगस्त से 9 अगस्त तक एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें जैव विविधता, महिला और युवा भागीदारी, कृषि आदि विषयों पर चर्चा की जाएगी।

 प्रधानमंत्री मोदी का आज का बड़ा ऐलान-:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वयं इस विशेष सम्मेलन का उद्घाटन किया है।

उन्होंने हरित क्रांति के नायक के सम्मान में आज स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किए।

 इस दौरान प्रधानमंत्री ने कहा-"आने वाले समय में भारत की दिशा टिकाऊ कृषि और नवाचार की ओर होगी।"

 महिला सशक्तिकरण की बड़ी खबर-:

मध्य प्रदेश सरकार ने लाडली बहना योजना के तहत आज महिलाओं के खातों में विशेष धनराशि ट्रांसफर की है, जिसमें रक्षाबंधन के अवसर पर अतिरिक्त राशि भी दी गई है।[1]

अन्य प्रमुख ट्रेंडिंग खबरें-:

अंतरराष्ट्रीय संबंध-: प्रधानमंत्री मोदी का 2019 के बाद पहली बार चीन दौरा, SCO समिट में भागीदारी।

आर्थिक मोर्चा-:आरबीआई ने रेपो रेट 5.5% पर स्थिर रखा, बैंक लोन और EMI पर राहत।

नए कानून और योजनाएँ-: नया मर्चेंट शिपिंग बिल 2024 पास; 75 नई वंदे भारत ट्रेनों की घोषणा।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार-: अमेरिका ने भारत पर कुल 50% आयात टैरिफ किया, जिस पर भारत ने आपत्ति जताई है।

निष्कर्ष-:

आज का दिन भारत के लिए प्रगति, शोध, महिला सशक्तिकरण और कृषि क्षेत्र में नवाचार का प्रतीक है। प्रो. एमएस स्वामीनाथन जी की विरासत और सरकार की नई पहलों से देश की आने वाले समय में दशा-दिशा और मजबूत होगी।  

आइये, हम सब मिलकर देश की इस सफलता में सहभागी बनें, किसानों और वैज्ञानिकों का सम्मान करें, और रोजगार व आत्मनिर्भर भारत की ओर कदम बढ़ाएँ।


Natonal Handloom Day


राष्ट्रीय हथकरघा दिवस-:

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय हथकरघा उद्योग और उसके कारीगरों के समर्पित योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। इसे पहली बार 2015 में मनाया गया था और इस तारीख का चयन 7 अगस्त 1905 को शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन की याद में किया गया था, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर स्वदेशी हथकरघा वस्त्रों को अपनाने का आह्वान किया गया था।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्देश्य भारतीय हथकरघा उद्योग की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व को प्रदर्शित करना, हथकरघा कारीगरों के योगदान को मान्यता देना और इस पारंपरिक उद्योग को और अधिक प्रोत्साहित करना है। यह उद्योग न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार और आजीविका का एक बड़ा स्रोत भी है। हथकरघा से जुड़े कारीगरों में 70% से अधिक महिलाएं हैं, जो इसे महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण माध्यम भी बनाता है।

हथकरघा उद्योग की खासियत है कि इसके उत्पाद प्राकृतिक रेशों जैसे कपास, रेशम, ऊन आदि से बने होते हैं, जो टिकाऊ और पर्यावरण-हितैषी होते हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख हथकरघा उत्पादों में बनारसी, जामदानी, कांजीवरम, भागलपुरी सिल्क, पटोला, फुलकारी, और कई अन्य पारंपरिक हस्तशिल्प शामिल हैं, जो उनकी अनूठी डिजाइन और कलाकारी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।

सरकार ने राष्ट्रीय हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम, बाजार पहुंच पहल, और कच्चा माल आपूर्ति योजना, जो कारीगरों को वित्तीय सहायता, विपणन सहायता, और कच्चे माल की सुविधा प्रदान करती हैं। इसके अलावा, इस दिन विभिन्न राज्यों में हथकरघा से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को इस क्षेत्र से जोड़ना और पारंपरिक कला का संरक्षण करना है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर बुनकरों को संबोधित करते हुए उनके काम की सराहना की है और कहा है कि वे भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षक हैं। उन्होंने हथकरघा उद्योग को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है।

राष्ट्रीय हथकरघा दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण और संवर्धन देने का एक निरंतर प्रयास है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हथकरघा उद्योग के कारीगर हमारी संपूर्ण सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक हैं, और उनके हुनर और परिश्रम को बनाए रखना और बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है। इस दिवस के माध्यम से देश में हथकरघा उद्योग की प्रतिष्ठा बढ़ाने तथा कारीगरों को मान-सम्मान और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने का काम होता है। 

यहाँ भारत भर के कुछ सबसे उल्लेखनीय पारंपरिक हथकरघा पैटर्न और शैलियाँ दी गई हैं-:

इकत (तेलंगाना, ओडिशा, गुजरात)

इकत एक प्रतिरोधी रंगाई तकनीक है जिसमें बुनाई से पहले धागों को रंगा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप धुंधले किनारों वाले आकर्षक ज्यामितीय और अमूर्त पैटर्न बनते हैं। ओडिशा की संबलपुरी इकत और तेलंगाना की पोचमपल्ली इकत अपने जीवंत रंगों और सममित रूपांकनों के लिए प्रसिद्ध हैं।

पटोला (गुजरात)

पटोला साड़ियाँ दोहरी इकत तकनीक का उपयोग करके बनाई जाती हैं, जहाँ बुनाई से पहले ताने और बाने दोनों धागों पर पैटर्न बनाए जाते हैं। इन रेशमी साड़ियों में गहरे, सममित ज्यामितीय और पुष्प रूपांकन होते हैं जो समृद्धि का प्रतीक हैं और अपनी जटिलता और रंगों की जीवंतता के लिए अत्यधिक बेशकीमती हैं।

जामदानी (पश्चिम बंगाल)

जामदानी बुनाई में महीन मलमल के कपड़े पर बुने गए जटिल डिज़ाइन शामिल होते हैं, जिनकी विशेषता नाजुक पुष्प और ज्यामितीय पैटर्न होते हैं। यह एक प्राचीन शिल्प है जिसकी जड़ें बंगाल और बांग्लादेश में हैं, और यह अपनी अत्यंत सुंदरता और समय लेने वाली हथकरघा प्रक्रिया के लिए जाना जाता है।

बनारसी (उत्तर प्रदेश)

बनारसी साड़ियाँ सोने और चाँदी के ज़री के धागों से बने अपने समृद्ध ब्रोकेड के काम के लिए प्रसिद्ध हैं। इन साड़ियों के रूपांकनों में फूल, पत्ते, बेलें, मोर जैसे जानवर और धार्मिक प्रतीक शामिल हैं, जो मुगल प्रभावों को दर्शाते हैं।

कांजीवरम (तमिलनाडु)

ये रेशमी साड़ियाँ अपने चटख रंगों और ज़री के गाढ़े किनारों से पहचानी जाती हैं। आम रूपांकनों में मंदिर के डिज़ाइन, मोर, हाथी और पौराणिक जीव शामिल हैं, जो शुभता और विरासत का प्रतीक हैं।

फुलकारी (पंजाब)

हाथ से बुने कपड़े पर फुलकारी कढ़ाई से पुष्प और लोक रूपांकन बनते हैं जो ग्रामीण जीवन, उत्सव के विषयों और प्रकृति को दर्शाते हैं। यह जीवंत धागों का काम पंजाबी संस्कृति की पहचान है।

पैठणी (महाराष्ट्र)

पैठणी साड़ियाँ अपने समृद्ध रेशमी कपड़े और पल्लू (अंत भाग) में बुने गए मोर, कमल के फूल और बेल के डिज़ाइन जैसे जटिल रूपांकनों के लिए जानी जाती हैं, जो लालित्य और परंपरा का प्रतीक हैं।

चंदेरी (मध्य प्रदेश)

चंदेरी कपड़ों में महीन सोने और चाँदी के ज़री के काम के साथ पारदर्शी बनावट होती है। आम डिज़ाइनों में ज्यामितीय आकृतियाँ, फूलों की बेलें और सिक्के व पक्षी जैसे पारंपरिक रूपांकन शामिल हैं।

बंधनी (राजस्थान, गुजरात)

बंधनी एक टाई-डाई तकनीक है जिसमें मोर, फूल और ज्यामितीय आकृतियों जैसे रूपांकनों के साथ बिंदीदार पैटर्न बनाए जाते हैं। प्रत्येक टाई-डाई पैटर्न सांस्कृतिक प्रतीकवाद और क्षेत्रीय पहचान रखता है।

कलमकारी (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना)

कलमकारी में प्राकृतिक रंगों से कपड़े पर हाथ से पेंटिंग या ब्लॉक-प्रिंटिंग की जाती है, जिसमें अक्सर पौराणिक दृश्यों, फूलों के पैटर्न और जातीय रूपांकनों के साथ जटिल बॉर्डर बनाए जाते हैं

निष्कर्ष-:

इस प्रकार राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की परंपरा, संस्कृति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो हमें अपने वैभवशाली हथकरघा उद्योग को निरंतर सशक्त बनाने का संदेश देता है।

भारत के पारंपरिक हथकरघा पैटर्न अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जटिल शिल्प कौशल और क्षेत्रीय विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं, जो भारत की विशाल कलात्मक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट बुनाई तकनीकें, रूपांकन और डिज़ाइन होते हैं, जो अक्सर प्रकृति, पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिकता और दैनिक जीवन से प्रेरित होते हैं।

मंगलवार, 5 अगस्त 2025

हिरोशिमा दिवस

                       हिरोशिमा दिवस-: एक चेतावनी, एक संदेश, एक उम्मीद

6 अगस्त 1945 – मानव इतिहास का वह दिन, जब विज्ञान ने अपनी सबसे भयानक शक्ल दिखाई। इस दिन अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा शहर पर पहला परमाणु बम गिराया। उस एक बम ने लाखों ज़िंदगिया तबाह कर दीं, शहर को राख बना दिया, और आने वाली पीढ़ियों के लिए दर्द का एक अंतहीन सिलसिला शुरू किया।

हर साल 6 अगस्त को "हिरोशिमा दिवस" मनाया जाता है। यह सिर्फ इतिहास को याद करने का दिन नहीं है, बल्कि शांति, अहिंसा और परमाणु निरस्त्रीकरण का संदेश देने वाला दिन है

हिरोशिमा दिवस क्यों मनाया जाता है?

द्वितीय विश्व युद्ध से पहले जापानी शहर हिरोशिमा  की अनुमानित जनसंख्या 419,182 थी, जो परमाणु हमले के बाद भारी गिरावट के साथ 137,197 हो गई। बम 6 अगस्त, 1945 को, “लिटिल बॉय” नामक एक यूरेनियम बंदूक-प्रकार का बम विमान से गिराया गया और शहर के पांच वर्ग मील क्षेत्र को नष्ट कर दिया। बमबारी के कारण लगभग 80,000 लोग लगभग तुरंत मारे गए और 35,000 से अधिक घायल हो गए। इसके परिणामस्वरूप बड़े पैमाने पर संरचनात्मक क्षति हुई, हिरोशिमा की 69 प्रतिशत इमारतें नष्ट हो गईं। 

  1. युद्ध की विभीषिका को याद करने के लिए

  2. परमाणु हथियारों के विरोध में जागरूकता बढ़ाने के लिए

  3. विश्व शांति का संदेश फैलाने के लिए

  4. भविष्य में ऐसे हमलों से बचने की प्रेरणा देने के लिए

हिरोशिमा का प्रारंभिक इतिहास-:

मई 1945 में जर्मनी ने मित्र सेनाओं के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और एशिया में द्वितीय विश्व युद्ध जारी रहा। मित्र देशों की सेनाएँ शाही जापान के साथ लड़ती रहीं।संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुसार परमाणु बम का उपयोग जापान से लाखों अमेरिकी हताहतों को बचाने का एकमात्र तरीका था। मैनहट्टन परियोजना के माध्यम से संयुक्त राज्य अमेरिका ने दो परमाणु बम बनाये। पहले परमाणु बम को ‘लिटिल बॉय’ और दूसरे को ‘फैट मैन’ के नाम से जाना जाता था।लिटिल बॉय को हिरोशिमा पर और फैट मैन को नागासाकी पर गिराया गया था।6 अगस्त 1945 की एक सुहानी सुबह, अमेरिकी बी-29 ने नागासाकी पर ‘लिटिल बॉय’ गिरा दिया, जिससे हजारों नागरिक और सैनिक मारे गए।इसके ठीक तीन दिन बाद, नागासाकी पर ‘फैट मैन’ गिराया गया, 

15 अगस्त को हिरोशिमा और नागासाकी पर बमबारी से द्वितीय विश्व युद्ध का अंत हो गया।जापान में बमबारी में जीवित बचे लोगों को हिबाकुशा के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है विस्फोट प्रभावित लोग।जापान में 650000 हिबाकुशा हैं जिन्हें सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है

हिरोशिमा  पर परमाणु के बाद का जीवन का जीवन-:

जापानियों का जीवन सदैव के लिए प्रभावित हो गया। त्सुतोमु यामागुची, जो उस समय मित्सुबिशी हेवी इंडस्ट्रीज में 29 वर्षीय जहाज इंजीनियर थे, हिरोशिमा में कंपनी के शिपयार्ड की ओर जा रहे थे, जब लिटिल बॉय, दुनिया का पहला रणनीतिक परमाणु बम, 2 मील से भी कम दूरी पर हवा में विस्फोट हो गया, विस्फोट से वह बेहोश हो गया, उसके बाएं कान का पर्दा फट गया और उसका ऊपरी धड़ जल गया। तीन दिन बाद, नागासाकी में अपने घर वापस आकर, यामागुची एक संशयग्रस्त मालिक को अपनी कहानी सुना रहा था, जब फैट मैन, दूसरा रणनीतिक परमाणु बम, उस शहर पर विस्फोट हुआ, वह भी 2 मील से भी कम दूरी पर सदमे की लहर ने दोनों व्यक्तियों को फर्श पर गिरा दिया और यामागुची की पट्टियाँ फाड़ दीं। 

इंजीनियर को अपनी शारीरिक चोटों से उबरने में एक दशक से अधिक समय लगा। उनकी पत्नी और नवजात बेटा नागासाकी विस्फोट में मामूली चोटों के साथ बच गए, लेकिन परिवार खराब स्वास्थ्य से पीड़ित था। उनके बेटे की 2005 में 59 वर्ष की आयु में कैंसर से मृत्यु हो गई । यामागुची को अब औपचारिक रूप से डबल-हिबाकुशा (“विस्फोट-प्रभावित व्यक्ति”) के रूप में मान्यता दी गई है और वह परमाणु निरस्त्रीकरण  का एक मुखर प्रस्तावक बन गया है। यामागुची ने द टाइम्स को बताया, “परमाणु बम से मुझे नफरत इसलिए है क्योंकि यह इंसानों की गरिमा पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।” “इस चमत्कार को प्राप्त करने के बाद, सच्चाई को आगे बढ़ाना मेरी जिम्मेदारी है,”

कैमरून के अनुसार, परमाणु बम विस्फोटों के आधिकारिक तौर पर प्रमाणित 226,598 जीवित बचे लोग आज भी जापान में जीवित हैं। हिबाकुशा की वास्तविक संख्या संभवतः बहुत बड़ी है, क्योंकि कई लोग प्रमाणन के लिए सख्त और कभी-कभी व्यक्तिपरक योग्यताओं को पूरा नहीं कर सके, जबकि अन्य ने जापान छोड़ दिया है। हालाँकि, इन गवाहों की औसत आयु अब तिहत्तर वर्ष है। अधिकांश लोग अपने अधिकांश जीवन में विकिरण-संबंधी बीमारी से जूझ रहे हैं, और 2015 में बमबारी की सत्तरवीं बरसी तक मृत्यु निश्चित रूप से उनमें से अधिकांश को चुप करा देगी।

तब चौदह वर्षीय अकिहिरो ताकाहाशी को याद आता है कि वह अपनी कक्षा में जाने के लिए इंतजार कर रहा था और फिर उसके पूरे शरीर पर जलन के साथ जाग गया। वह अपने जलते हुए मांस को बुझाने की कोशिश करने के लिए नदी की ओर चला गया। उसकी शारीरिक पीड़ा अभी शुरू ही हुई थी; अब उन्हें लिवर कैंसर के इलाज और भर्ती होने के लिए प्रतिदिन एक घंटे के अस्पताल का दौरा करना पड़ता है, जिसके कारण वह हर दिन अपने स्वास्थ्य के बारे में चिंतित रहते हैं

स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों के अलावा, परमाणु बम विस्फोटों के अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव भी थे। द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हो गया और संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और अड़तालीस देशों के बीच एक शांति संधि हुई (ओ’कॉनर, 2010)। बम के रचनाकारों को बम के प्रति वैसी भावनाएं नहीं मिलीं जैसी उन्होंने भविष्यवाणी की थी और वैज्ञानिक जल्द ही इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि इस बम का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

hiroshima short video link download - Yahoo Video Search results

एक वैश्विक संदेश-:

आज जब दुनिया फिर से युद्ध, नफरत और हथियारों की दौड़ की तरफ लौट रही है, 

हिरोशिमा एक मौन पुकार है

रुको, सोचो, और बदलो –

क्योंकि अगली बार शायद कोई हिरोशिमा बचने के लिए ही न रहे।

हिरोशिमा की राख से एक पुकार उठती है —
 वो पुकार शांति की है, मानवता की है, जीवन की है।
 ये दिन सिर्फ अतीत की त्रासदी नहीं,
 बल्कि भविष्य के लिए चेतावनी भी है।

परमाणु शक्ति को हमने जब हथियार बनाया,
 तब हमने केवल शहर नहीं जलाए,
 बल्कि मानवता की आत्मा को झुलसा दिया।

अब समय आ गया है —
 जहाँ हथियारों की भाषा बोली जाती है,
 वहाँ हम प्रेम का संवाद शुरू करें।
 जहाँ युद्ध की तैयारी हो,
 वहाँ हम शांति की योजना बनाएं।

हिरोशिमा हमें सिखाता है:
 
कि युद्ध कभी समाधान नहीं होता,
 शांति ही मानवता की सबसे बड़ी विजय होती है।

आओ, हम सब मिलकर संकल्प लें –
 कि नफरत के बदले प्रेम,
 विनाश के बदले निर्माण,
 और युद्ध के बदले शांति को चुनेंगे।

मंगलवार, 15 अप्रैल 2025

सोशल कॉमर्स का भविष्य

 सोशल कॉमर्स का भविष्य: डिजिटल शॉपिंग का एक नया युग-:

  परिचय-:

21वीं सदी का तीसरा दशक डिजिटल इनोवेशन के युग के रूप में उभरा है। तकनीक ने न केवल संचार की गतिशीलता को बदला है, बल्कि खरीदारी के अनुभव को भी बदल दिया है। इस बदलाव की अगली लहर होगी- सोशल कॉमर्स। यह कोई ट्रेंड नहीं है, बल्कि एक सामाजिक-तकनीकी क्रांति है जो अगले कुछ वर्षों में ई-कॉमर्स की परिभाषा को बदल रही है।

  सोशल कॉमर्स क्या है?

सोशल कॉमर्स सोशल मीडिया साइट्स के ज़रिए खरीदारी करना है। उपयोगकर्ता Facebook, Instagram, YouTube, WhatsApp या Pinterest जैसी साइट्स पर उत्पाद ढूँढ़ते हैं, उत्पाद के बारे में सीखते हैं, समीक्षाएँ पढ़ते हैं और किसी तीसरे पक्ष की साइट पर जाने के बिना सीधे वहाँ से खरीदारी करते हैं।

  सोशल कॉमर्स बनाम पारंपरिक ई-कॉमर्स-:

              फीचर                   सोशल कॉमर्स                          पारंपरिक -कॉमर्स                                

  1.      प्लेटफ़ॉर्म            सोशल मीडिया-आधारित                वेबसाइट या ऐप-आधारित
  2.      इंटरैक्शन             लाइक, कमेंट, शेयर                     सीमित (समीक्षा और रेटिंग
  3.     विश्वास का आधार      प्रभावशाली लोग, मित्र, यूजीसी          ब्रांड और वेबसाइट
  4.    शॉपिंग अनुभव          इंटरैक्टिव और विज़ुअल                टेक्स्ट और इमेज-आधारित

  भारत में सोशल कॉमर्स का वर्तमान परिदृश्य-:

भारत में सोशल कॉमर्स तेज़ी से बढ़ रहा है। Meesho, DealShare और GlowRoad ने इस सेक्टर को नई ऊंचाई पर पहुँचाया है। भारत का सोशल कॉमर्स मार्केट 2022 में लगभग 2 बिलियन डॉलर का था और 2025 तक बढ़कर 70 बिलियन डॉलर हो जाएगा।

  सोशल कॉमर्स की प्रमुख विशेषताएँ-:

  1. सीधा ग्राहक संपर्क-:  ग्राहक और ब्रांड सोशल मीडिया पर सीधे एक-दूसरे से बात करते हैं।
  2. यूजीसी (यूजर जनरेटेड कंटेंट)-: उपयोगकर्ताओं द्वारा योगदान की गई समीक्षाएं, चित्र, वीडियो।
  3. इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग-:: माइक्रो और नैनो इन्फ्लुएंसर खरीदारी के फैसले लेते हैं।
  4. लघु वीडियो प्रारूप- : उत्पाद प्रचार के लिए रील, शॉर्ट्स, स्नैप।

  सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म की भूमिका-:

  1. इंस्टाग्राम-:  शॉप टैग, रील और इंस्टा स्टोर के माध्यम से खरीदारी।
  2. फेसबुक-:  मार्केटप्लेस और समूहों के माध्यम से व्यापक पहुंच।
  3. व्हाट्सएप-:  व्यावसायिक खाते, कैटलॉग और चैट ऑटोमेशन का समर्थन करते हैं।
  4. यूट्यूब-: विवरण में लिंक, लाइव शॉपिंग और समीक्षा वीडियो।

  उपभोक्ता व्यवहार में बदलाव-:

वर्तमान उपभोक्ता पारंपरिक विज्ञापनों के विपरीत अपने सोशल दोस्तों और इन्फ्लुएंसर पर विश्वास करते हैं। 80% से अधिक खरीदार वास्तव में खरीदारी करने से पहले सोशल नेटवर्क की पुष्टि करते हैं। ग्राहक कोई वस्तु नहीं खरीदना चाहते, बल्कि कोई अनुभव चाहते हैं।

  इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग और यूजीसी की शक्ति-:

माइक्रो और नैनो इन्फ्लुएंसर सबसे प्रभावी होते हैं क्योंकि माइक्रो-इन्फ्लुएंसर अनुयायी व्यक्तिगत स्तर पर उनसे पहचान करते हैं।

  1. यूजीसी ब्रांड को मानवीय तत्व प्रदान करता है।
  2. विश्वास, संबंध स्थापित करता है और रूपांतरण को बढ़ाता है।

  लाइव शॉपिंग और वीडियो कॉमर्स का चलन-:

चीन में Taobao Live जैसी सेवाएँ पहले से ही क्रांतिकारी रही हैं। भारत भी तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। YouTube लाइव और Instagram लाइव जैसे प्लेटफ़ॉर्म ब्रांड के लिए इंटरैक्टिव सेलिंग स्पेस बन रहे हैं।

  AI, चैटबॉट और तकनीक का प्रभाव-:

  1. AI अनुशंसाएँ-: उपयोगकर्ता की प्राथमिकताओं के आधार पर उत्पादों का सुझाव दें।
  2. चैटबॉट-: 24x7 सहायता प्रदान करें।
  3. AR/VR-: खरीदने से पहले आज़माएँ अनुभव आम होते जा रहे हैं।

 क्षेत्रीय भाषाओं और वॉयस कॉमर्स की भूमिका-:

भारत की विविधता के साथ, ब्रांड अब स्थानीय भाषाओं में सामग्री बनाते हैं। एलेक्सा और गूगल असिस्टेंट जैसे वॉयस असिस्टेंट ग्रामीण और बुज़ुर्ग आबादी के लिए भी डिजिटल शॉपिंग की सुविधा प्रदान कर रहे हैं।

  ब्रांड और छोटे व्यवसाय के अवसर-:

  1. वेबसाइट के बिना सीधे Instagram या WhatsApp पर स्टोर चलाएँ।
  2. विज्ञापन खर्च में कमी।
  3. ग्राहकों के साथ बेहतर व्यक्तिगत संपर्क।

  सोशल कॉमर्स चुनौतियाँ-:

  1. डेटा की सुरक्षा और गोपनीयता के मुद्दे।
  2. नकली उत्पाद और धोखाधड़ी का जोखिम।
  3. विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म एल्गोरिदम सामग्री नियोजन को जटिल बनाते हैं।

  भविष्य के रुझान-:

  1. मेटावर्स शॉपिंग: 3D वर्चुअल स्टोर खोजें।
  2. NFT-आधारित उत्पाद प्रचार
  3. शॉर्ट-फ़ॉर्म AI वीडियो विज्ञापन
  4. क्लिक-टू-बाय लाइव शो

 निष्कर्ष और रणनीतिक सुझाव-:

सोशल कॉमर्स न केवल एक चलन है बल्कि एक उभरता हुआ मॉडल है जो भविष्य के डिजिटल बाज़ार के लिए मंच तैयार कर रहा है। कंपनियों के लिए सोशल कॉमर्स को अपनाने और संचार, कनेक्शन और ग्राहक-केंद्रित समाधानों को प्राथमिकता देने का समय आ गया है।सोशल कॉमर्स का भविष्य उज्जवल है और यह कह सकते हैं कि आने वाले समय में यह पारंपरिक ई-कॉमर्स को टक्कर देगा। अगर आप एक बिज़नेस ओनर, क्रिएटर या डिजिटल मार्केटर हैं, तो सोशल कॉमर्स को अपनाना आपके लिए एक स्मार्ट मूव हो सकता है।

भारत में छात्रों के आत्महत्या के बढ़ते कदम

 

भारत में छात्रों की आत्महत्या के बढ़ते कदम-: जब असफलता ज़िंदगी का बोझ बन जाती है

"आजकल देखने को मिल रहा है की बच्चो  में पढाई को लेकर बहुत दबाब है क्यूंकि  सबकी सोच हो गयी है कि अच्छे अंक और बढ़िया  परिणाम ही हमे सफल बनायेगे ,जिससे बच्चे बहुत ज्यादा दबाब लेने लगे है और वो समझ नहीं  रहे है कि  लाइफ में सफलता केवल अच्छे अंक  या रैंक नहीं होती है! ये ज़िंदगी है मेरे प्यारे बच्चो इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते है हमे हारना नहीं है बल्कि दुगनी शक्ति से इसका सामना करना है"

आजकल देखने को मिल रहा है कि हज़ारो बच्चे अपनी असफलता और लोगो कि अपेक्षाओं से हारकर आत्महत्या जैसे बड़े कदम उठा रहे है ये हमारे इस समाज के लिए सोचने वाला विषय है ये हमारे इस समाज के लिए सोचने वाला विषय है इस पर चर्चा करना और विचार करना हमारी नैतिक ज़िम्मेदारी बनती है कि हम समाज मे एक ऐसा माहौल तैयार करे कि बच्चो कि सोच मे ये परिवर्तन हो कि असफल होने से ज़िंदगी खत्म नहीं हो जाती!

भारत में छात्रों की आत्महत्या के प्रमुख कारण-:

·   परीक्षा मे अच्छे परिणाम और परिवार कि अपेक्षाएं को पूरा करने का दबाब इसका  प्रमुख कारण है

·       आजकल ये भी देखा जा रहा है कि बच्चो का अकेलापन वो अपनी बाते किसी से शेयर नहीं कर पाते

·       कई बार ऐसा भी देखा है है कि स्कूल या कॉलेज मे उनके साथियो या अध्यापको द्वारा उनको ये बोलना कि तुम ये काम कर ही नहीं सकते जिनसे उनके मन मे ये बात बैठ जाती है कि मुझे कुछ नहीं आता मैं बहुत कमज़ोर हूँ

·       परिवार मे माता-पिता के बीच रिश्ते अच्छे नहीं होने कि वजह से भी उनमे तनाव बढ़ता जाता है और वो अपने मन कि बात उनसे शेयर नहीं करते है

·       आजकल ऑनलाइन दोस्त तो बहुत है लेकिन एक ऐसे दोस्त जिससे वो अपने मन की बात शेयर कर सके होने कि वजह से बच्चे डिप्रेशन का शिकार हो रहे है

ऐसे लक्षण जो बच्चो मे दिखे तो माता-पिता को नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए-:

·           बच्चो का अचानक से कम बाते करने लग जाना

·          उदास और ऐसा दिखना कि वो हमेशा कुछ सोच रहा है

·        उनमे भूख कम लगाना और नींद लगना

·        उनका अचानक से अकेले रहने लगना किसी से मिलने का मन नहीं करना

·        हमेशा बच्चो मे चिड़चिड़ापन रहना,छोटी बातो पे गुस्सा आना

·        मैं मर जाऊंगा तो अच्छा होगा सबके लिए ,ऐसा बोलना

·        किसी भी काम मे उनका रूचि लेना

रोकथाम और बचाव-:

·       बच्चो से खुलकर माता-पिता को बात करनी चाहिए कि सफलता ही सबकुछ नहीं होती

·       बच्चो कि तुलना किसी से नहीं करनी चाहिए उनको ये महसूस कराए कि वो किसी से काम है 

·       अगर बच्चो मे चिड़चिड़ापन और गुस्सा दिखता है तो किसी मनोचिकिस्तक कि मदद ले

·       बच्चो को ये समझाये कि किसी परीक्षा का परिणाम उनके ज़िन्दगी से बड़ा नहीं हो सकता 

·       बच्चो पे किसी चीज़ का ज्यादा दबाव डालें उनको प्यार से समझाये वो समझ जायेगा

·       घर मे प्रेम और सकारात्मक माहौल बनाये जिससे बच्चा अपनी हर छोटी बात भी किसी से शेयर करने मे संकोच नहीं करेगा

·       बच्चो को ऑनलाइन गतिबिधियों पे धयान दे कि बच्चा क्या देख रहा है, उनको समझाये कि ऑनलाइन चीज़े सुरक्षित नहीं होती  है 

एक खूबसूरत सन्देश-:

प्यारे बच्चो ये ज़िन्दगी बार-बार हमें नहीं मिलती इसलिए खुलकर इसका एन्जॉय करो, एक असफलता हमे नहीं हरा सकती आप लोग बहुत बहादुर हो इतनी छोटी से बात से हार मत मानो,असफलता को स्वीकार करो और लग जाओ दुगनी मेंहनत से एक दिन सफलता ज़रूर आपके कदम चूमेगी

      ज़िन्दगी मे आगे कुछ दिखे तो सोचना छोड़ दो क्युकी एक सफलता ये नहीं फैसला कर सकती कि हमारी ज़िन्दगी कितनी होगी बस ज़िंदगी मे खुश रहना सीखो देखो ज़िन्दगी कितनी आसान लगने लगेगी

कभी मन मे कुछ गलत ख्याल आये तो अपने परिवार और माता-पिता की बारे मे सोचो कि आप क़े रहने से उनका क्या होगा,अगर फिर भी ऐसा ख्याल आये तो माता-पिता से खुलकर बाते करो इसमें मेरा मन नहीं लगता मुझे वो काम करना है वो आपकी भावना को ज़रूर समझेंगे

निष्कर्ष-:

 बच्चे एक नाजुक फूल कि पंखुड़ी  कि तरह होते है उनको जितने प्यार से सिचोगे वो उतना कि एक अच्छा खूबसूरत फूल बनकर तैयार होंगे! उनके मन मे ऐसा कभी ख्याल कि न आने दो कि वो अकेले है घर का ऐसा माहौल बना के रखो कि वो अपनी छोटी से छोटी बात कहने मे किसी से भी संकोच न करे!

आत्महत्या  किसी भी असफलता  का समाधान नहीं होता है उनको ऐसा कभी भी महसूस न होने दे कि कि दूसरा कोई विकल्प  नहीं है उनकी ज़िंदगी है ,उनको जीने का मौका दे उनपर कभी भी अपने सपने न थोपे कि तुमको ये बनना है, उनको एक खूबसूरत फूल बनने कि शिक्षा दे!

World Homeless Day

विश्व बेघर दिवस विश्व बेघर दिवस की शुरुआत 10 अक्टूबर 2010 को हुई थी इसका उद्देश्य बेघरी और अपर्याप्त आवास जैसी समस्याओं पर जागरूकता लाना और...