जलियांवाला
बाग हत्याकांड : इतिहास का काला दिन (Jallianwala Bagh
Massacre)
परिचय-:
जलियांवाला बाग हत्याकांड की
घटना 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के
दिन हुई थी. अमृतसर
के जलियांवाला बाग में जनरल
डायर ने शांतिपूर्ण सभा
पर बिना चेतावनी के
गोली चलवा दी. उस
दिन कई लोग अमृतसर
में त्योहार मनाने और रौलट एक्ट
के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में शामिल होने
के लिए इकट्ठा हुए
थे. रौलट एक्ट एक
ऐसा कानून था, जिससे अंग्रेज
बिना किसी मुकदमे के
किसी को भी गिरफ्तार
कर सकते थे.
इसी
दौरान जनरल डायर अपने
सैनिकों के साथ जलियांवाला
बाग पहुंचा. उसने बिना किसी
चेतावनी के गोलियां चलाने
का आदेश दे दिया.
बाग का एक ही
रास्ता था और उसे
भी बंद कर दिया
गया. लोग भाग नहीं
सके और कई लोगों
की जान चली गई.
यह घटना आजादी की
लड़ाई में एक बड़ा
मोड़ बन गई.
लोग रौलेट एक्ट और 10 अप्रैल को कांग्रेस के दो नेताओं, डॉ. सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू के गिरफ्तारी के विरोध में इकट्ठा हुए थें।
रौलेट
एक्ट-असली चिंगारी-:
प्रथम
विश्व युद्ध (1914-18) के दौरान भारत
में ब्रिटिश सरकार ने दमनकारी आपातकालीन
कानूनों की एक शृंखला
बनाई जिसका उद्देश्य भारत में पनप
रहे राष्ट्रवादी गतिविधियों का मुकाबला करना
था। लेकिन भारतीयों को उम्मीद थी
कि युद्ध समाप्त होने के बाद
उन्हें रियायत दी जाएगी लेकिन वर्ष 1919 में सर सिडनी
रॉलेट की अध्यक्षता वाली
राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर
रॉलेट एक्ट पारित कर
दिया गया। इस अधिनियम
ने सरकार को राजनीतिक गतिविधियों
को दबाने के लिये अधिकार
प्रदान किये और दो
साल तक बिना किसी
मुकदमे के राजनीतिक कैदियों
को हिरासत में रखने की
अनुमति दी। ऐसे में
इसे भारतीयों ने ना अपील, ना
दलील, ना वकील का
कानून कहा।
असल में यह भारत में बढ़ते असंतोष और राष्ट्रवादी
आंदोलनों के जवाब में बनाया गया था। इसका उद्देश्य क्रांतिकारी गतिविधियों को दबाना
और स्वतंत्रता संग्राम पर अंकुश लगाना था। यह अधिनियम भारतीय सदस्यों के एकजुट
होकर किये गए विरोध के बावजूद इंपीरियल विधानपरिषद में जल्दबाजी में पारित किया गया
था।
6
फरवरी 1919 को इंपीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल द्वारा रॉलेट एक्ट को पारित किया गया।
इन बिलों को “ब्लैक बिल” के रूप में भी जाना जाता है।
रॉलेट एक्ट
के विरोध का कारण-:
यह अधिनियम सरकार को निष्पक्ष सुनवाई
का अधिकार दिए बिना व्यक्तियों
को गिरफ्तार करने का अधिकार
देता है। इसने बंदी
प्रत्यक्षीकरण के अधिकार को
निलंबित कर दिया। इसने
अधिकारियों को बिना किसी
औपचारिक आरोप के संदिग्धों
को अनिश्चित काल तक हिरासत
में रखने की अनुमति
दे दी। इस अधिनियम
के तहत राजद्रोह के
मामलों की सुनवाई जूरी
की अनुपस्थिति में भी की
जा सकती थी। इससे
न्यायिक पारदर्शिता और निष्पक्षता से
समझौता हुआ। इस अधिनियम
ने प्रेस पर सेंसरशिप लगा
दी। इसने सरकार द्वारा
राजद्रोही समझी जाने वाली
सामग्री के प्रकाशन पर
प्रतिबंध लगा दिया
रॉलेट
एक्ट के प्रावधान:
·
बिना
मुकदमे की गिरफ्तारी: इस कानून के
तहत पुलिस किसी भी व्यक्ति
को बिना किसी वजह
के गिरफ्तार कर सकती थी।
·
जेल
में बंद करना: गिरफ्तार किए गए व्यक्ति
को बिना किसी सबूत
के दो साल तक
जेल में रखा जा
सकता था।
·
मुकदमे
का अधिकार नहीं: गिरफ्तार किए गए व्यक्ति
को मुकदमे का कोई अधिकार
नहीं था।
·
दंड
का प्रावधान: अधिनियम के धारा 22 और
27 के तहत किसी भी
आदेश की आज्ञा को
ना मानने के लिए दंड
का प्रावधान किया गया था,
जो छह महीने की
कैद या 500 रुपये का जुर्माना या
दोनों हो सकते थें
जनता
का असंतोष और अंग्रेजी शासन के खिलाफ बढ़ता आंदोलन-:
·
रौलेट
एक्ट को
लेकर जनता
का असंतोष
और अंग्रेजी
शासन के
खिलाफ बढ़ता
आंदोलन बहुत
ही महत्वपूर्ण
था। जब
रॉलेट एक्ट
लागू हुआ,
तो भारतीय
जनता में
भारी आक्रोश
और असंतोष
फैल गया।
लोग इस
कानून को
अपने मौलिक
अधिकारों पर
हमला मानते
थे।
·
महात्मा
गांधी ने
इस एक्ट
के खिलाफ
व्यापक स्तर
पर विरोध
और सत्याग्रह
का आयोजन
किया। जनता
ने हड़तालें
कीं, रैलियाँ
निकालीं, और
ब्रिटिश सरकार
के खिलाफ
खुलकर अपनी
नाराजगी जताई।
इस विरोध
ने पूरे
देश में
एकजुटता का
माहौल पैदा
किया और
स्वतंत्रता संग्राम
को एक
नया मोड़
दिया।
· जलियाँवाला बाग हत्याकांड, जो इसी आंदोलन के दौरान हुआ, ने जनता के गुस्से को और भड़का दिया। इस घटना ने ब्रिटिश शासन की क्रूरता को सबके सामने ला दिया और स्वतंत्रता की मांग को और मजबूती से उठाया। रौलेट एक्ट के कारण जनता और भी अधिक संगठित होकर ब्रिटिश शासन के खिलाफ खड़ी हो गई।
13 अप्रैल 1919 एक खौफनाक दिन-:
· लगभग 10 मिनट तक 1700 गोलियां चलाई गईं।· बाग के चारों ओर ऊंची दीवारें थीं, और बाहर निकलने का एक ही संकरा रास्ता था – जिसे सैनिकों ने बंद कर दिया था।· लोग जान बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े, कुछ एक-दूसरे पर गिरते-गिरते कुचल गए।
जनरल डायर का निर्दय बयान-:
जनरल डायर ने बाद में कहा – "मैंने जानबूझकर गोली चलाई ताकि भारतीयों के दिल में डर बैठ जाए।"
उसके इस कृत्य को ब्रिटिश संसद में पहले सराहा गया, लेकिन बाद में जब सच्चाई सामने आई, तो कुछ नेताओं ने इसकी आलोचना की।
प्रतिक्रिया-:
·
रवींद्रनाथ
टैगोर ने "नाइटहुड" की
उपाधि लौटा दी।
·
गांधी
जी ने ब्रिटिश सरकार
पर से विश्वास खो
दिया और असहयोग आंदोलन की शुरुआत की।
·
यह
हत्याकांड भारत के युवाओं में आक्रोश की आग बनकर
फैला, और भगत सिंह
जैसे वीरों की सोच को
क्रांतिकारी बना गया।
आज जलियांवाला बाग एक स्मारक है, जहां उस दिन की गोलियों के निशान आज भी दीवारों पर दिखते हैं। वहां का शहीदी कुआं, गोलियों से छलनी दीवारें, और शहीदों की याद में जलता अमर ज्योति का दीया – हर भारतीय को इतिहास का वह दर्दनाक अध्याय याद दिलाते हैं।
जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला-:
निष्कर्ष-:
जलियांवाला
बाग हत्याकांड सिर्फ एक नरसंहार नहीं
था, यह आज़ादी की
लड़ाई में एक ऐसी
चिंगारी थी जिसने ब्रिटिश
साम्राज्य की नींव को
हिला दिया। यह घटना आज
भी हमें यह याद
दिलाती है कि स्वतंत्रता
हमें यूं ही नहीं मिली – यह शहीदों के लहू की देन है।
जलियांवाला
बाग हत्याकांड हमें यह सिखाता
है कि स्वतंत्रता की
राह कभी आसान नहीं
होती। निहत्थे मासूमों की कुर्बानी ने
एक पूरे राष्ट्र की
चेतना को झकझोर दिया
और भारतीयों के मन में
यह दृढ़ निश्चय भर
दिया कि अब गुलामी
को और बर्दाश्त नहीं
किया जाएगा।
आज की पीढ़ी का यह कर्तव्य है कि वह उन शहीदों की कुर्बानी को याद रखे, और यह सुनिश्चित करे कि कभी भी ऐसी नाइंसाफी दोबारा न हो। इतिहास को जानना सिर्फ ज्ञान नहीं, बल्कि चेतना का जागरण है।