राष्ट्रीय हथकरघा दिवस-:
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत में प्रत्येक वर्ष 7 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन भारतीय हथकरघा उद्योग और उसके कारीगरों के समर्पित योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित है। इसे पहली बार 2015 में मनाया गया था और इस तारीख का चयन 7 अगस्त 1905 को शुरू हुए स्वदेशी आंदोलन की याद में किया गया था, जिसमें विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार कर स्वदेशी हथकरघा वस्त्रों को अपनाने का आह्वान किया गया था।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस का उद्देश्य भारतीय हथकरघा उद्योग की समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व को प्रदर्शित करना, हथकरघा कारीगरों के योगदान को मान्यता देना और इस पारंपरिक उद्योग को और अधिक प्रोत्साहित करना है। यह उद्योग न केवल भारत की सांस्कृतिक पहचान का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में रोजगार और आजीविका का एक बड़ा स्रोत भी है। हथकरघा से जुड़े कारीगरों में 70% से अधिक महिलाएं हैं, जो इसे महिला सशक्तिकरण का महत्वपूर्ण माध्यम भी बनाता है।
हथकरघा उद्योग की खासियत है कि इसके उत्पाद प्राकृतिक रेशों जैसे कपास, रेशम, ऊन आदि से बने होते हैं, जो टिकाऊ और पर्यावरण-हितैषी होते हैं। इस क्षेत्र के प्रमुख हथकरघा उत्पादों में बनारसी, जामदानी, कांजीवरम, भागलपुरी सिल्क, पटोला, फुलकारी, और कई अन्य पारंपरिक हस्तशिल्प शामिल हैं, जो उनकी अनूठी डिजाइन और कलाकारी के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध हैं।
सरकार ने राष्ट्रीय हथकरघा उद्योग को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे राष्ट्रीय हथकरघा विकास कार्यक्रम, बाजार पहुंच पहल, और कच्चा माल आपूर्ति योजना, जो कारीगरों को वित्तीय सहायता, विपणन सहायता, और कच्चे माल की सुविधा प्रदान करती हैं। इसके अलावा, इस दिन विभिन्न राज्यों में हथकरघा से जुड़े सांस्कृतिक कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं, जिनका उद्देश्य युवाओं को इस क्षेत्र से जोड़ना और पारंपरिक कला का संरक्षण करना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के अवसर पर बुनकरों को संबोधित करते हुए उनके काम की सराहना की है और कहा है कि वे भारतीय कला और संस्कृति के संरक्षक हैं। उन्होंने हथकरघा उद्योग को वैश्विक मंच पर पहचान दिलाने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को दोहराया है।
राष्ट्रीय हथकरघा दिवस केवल एक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षण और संवर्धन देने का एक निरंतर प्रयास है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हथकरघा उद्योग के कारीगर हमारी संपूर्ण सांस्कृतिक विरासत के संरक्षक हैं, और उनके हुनर और परिश्रम को बनाए रखना और बढ़ावा देना हमारा कर्तव्य है। इस दिवस के माध्यम से देश में हथकरघा उद्योग की प्रतिष्ठा बढ़ाने तथा कारीगरों को मान-सम्मान और आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने का काम होता है।
यहाँ भारत भर के कुछ सबसे उल्लेखनीय पारंपरिक हथकरघा पैटर्न और शैलियाँ दी गई हैं-:
इकत (तेलंगाना, ओडिशा, गुजरात)
इकत एक प्रतिरोधी रंगाई तकनीक है जिसमें बुनाई से पहले धागों को रंगा जाता है, जिसके परिणामस्वरूप धुंधले किनारों वाले आकर्षक ज्यामितीय और अमूर्त पैटर्न बनते हैं। ओडिशा की संबलपुरी इकत और तेलंगाना की पोचमपल्ली इकत अपने जीवंत रंगों और सममित रूपांकनों के लिए प्रसिद्ध हैं।
पटोला (गुजरात)
पटोला साड़ियाँ दोहरी इकत तकनीक का उपयोग करके बनाई जाती हैं, जहाँ बुनाई से पहले ताने और बाने दोनों धागों पर पैटर्न बनाए जाते हैं। इन रेशमी साड़ियों में गहरे, सममित ज्यामितीय और पुष्प रूपांकन होते हैं जो समृद्धि का प्रतीक हैं और अपनी जटिलता और रंगों की जीवंतता के लिए अत्यधिक बेशकीमती हैं।
जामदानी (पश्चिम बंगाल)
जामदानी बुनाई में महीन मलमल के कपड़े पर बुने गए जटिल डिज़ाइन शामिल होते हैं, जिनकी विशेषता नाजुक पुष्प और ज्यामितीय पैटर्न होते हैं। यह एक प्राचीन शिल्प है जिसकी जड़ें बंगाल और बांग्लादेश में हैं, और यह अपनी अत्यंत सुंदरता और समय लेने वाली हथकरघा प्रक्रिया के लिए जाना जाता है।
बनारसी (उत्तर प्रदेश)
बनारसी साड़ियाँ सोने और चाँदी के ज़री के धागों से बने अपने समृद्ध ब्रोकेड के काम के लिए प्रसिद्ध हैं। इन साड़ियों के रूपांकनों में फूल, पत्ते, बेलें, मोर जैसे जानवर और धार्मिक प्रतीक शामिल हैं, जो मुगल प्रभावों को दर्शाते हैं।
कांजीवरम (तमिलनाडु)
ये रेशमी साड़ियाँ अपने चटख रंगों और ज़री के गाढ़े किनारों से पहचानी जाती हैं। आम रूपांकनों में मंदिर के डिज़ाइन, मोर, हाथी और पौराणिक जीव शामिल हैं, जो शुभता और विरासत का प्रतीक हैं।
फुलकारी (पंजाब)
हाथ से बुने कपड़े पर फुलकारी कढ़ाई से पुष्प और लोक रूपांकन बनते हैं जो ग्रामीण जीवन, उत्सव के विषयों और प्रकृति को दर्शाते हैं। यह जीवंत धागों का काम पंजाबी संस्कृति की पहचान है।
पैठणी (महाराष्ट्र)
पैठणी साड़ियाँ अपने समृद्ध रेशमी कपड़े और पल्लू (अंत भाग) में बुने गए मोर, कमल के फूल और बेल के डिज़ाइन जैसे जटिल रूपांकनों के लिए जानी जाती हैं, जो लालित्य और परंपरा का प्रतीक हैं।
चंदेरी (मध्य प्रदेश)
चंदेरी कपड़ों में महीन सोने और चाँदी के ज़री के काम के साथ पारदर्शी बनावट होती है। आम डिज़ाइनों में ज्यामितीय आकृतियाँ, फूलों की बेलें और सिक्के व पक्षी जैसे पारंपरिक रूपांकन शामिल हैं।
बंधनी (राजस्थान, गुजरात)
बंधनी एक टाई-डाई तकनीक है जिसमें मोर, फूल और ज्यामितीय आकृतियों जैसे रूपांकनों के साथ बिंदीदार पैटर्न बनाए जाते हैं। प्रत्येक टाई-डाई पैटर्न सांस्कृतिक प्रतीकवाद और क्षेत्रीय पहचान रखता है।
कलमकारी (आंध्र प्रदेश, तेलंगाना)
कलमकारी में प्राकृतिक रंगों से कपड़े पर हाथ से पेंटिंग या ब्लॉक-प्रिंटिंग की जाती है, जिसमें अक्सर पौराणिक दृश्यों, फूलों के पैटर्न और जातीय रूपांकनों के साथ जटिल बॉर्डर बनाए जाते हैं
निष्कर्ष-:
इस प्रकार राष्ट्रीय हथकरघा दिवस भारत की परंपरा, संस्कृति और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है, जो हमें अपने वैभवशाली हथकरघा उद्योग को निरंतर सशक्त बनाने का संदेश देता है।
भारत के पारंपरिक हथकरघा पैटर्न अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत, जटिल शिल्प कौशल और क्षेत्रीय विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं, जो भारत की विशाल कलात्मक और सांस्कृतिक परंपराओं को दर्शाते हैं। प्रत्येक क्षेत्र की अपनी विशिष्ट बुनाई तकनीकें, रूपांकन और डिज़ाइन होते हैं, जो अक्सर प्रकृति, पौराणिक कथाओं, आध्यात्मिकता और दैनिक जीवन से प्रेरित होते हैं।
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