बाटा कंपनी -जूतों की दुनिया
प्रस्तावना-:
बाटा कंपनी, जूतों की दुनिया में एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई भारतीय अनजान हो। भारत के हर घर में, खासकर मिडिल क्लास परिवारों में 'बाटा' पर भरोसा किया जाता है। यह कंपनी सिर्फ एक ब्रांड नहीं, एक विश्वास है, जिसकी शुरुआत एक छोटे से शहर से हुई और आज यह वैश्विक स्तर पर जूतों, मोजे और टायर तक का कारोबार करती है।
1. कंपनी की शुरुआत और इतिहास
चेकोस्लोवाकिया से सफर
बाटा कंपनी की नींव 1894 में मध्य यूरोप के चेकोस्लोवाकिया (जो आज चेक गणराज्य है) के ज़्लिन शहर में टॉमस बाटा, अन्ना और एंटोनिन बाटा द्वारा रखी गई थी। टॉमस बाटा एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे, जिनका पेशा जूते बनाना था। परिवार के संघर्षों से निकलकर टॉमस ने छोटी फैक्ट्री से अपने कारोबार की शुरुआत की।
हालात बिगड़ने पर टॉमस इंग्लैंड गए, मजदूरी की, जूता व्यापार के नए तौर-तरीके सीखे और वापस लौटकर बिजनेस को फिर से खड़ा किया। कंपनी पहला विश्व युद्ध के बाद यूरोप के साथ मिडिल ईस्ट में भी जूते बेचने लगी। उस दौर की आर्थिक मंदी के चलते बाटा ने अपने जूतों के दाम आधे कर दिए और कर्मचारियों को कंपनी के मुनाफे में हिस्सेदारी दी।
जूते के अलावा अन्य उत्पाद
1925 तक बाटा की दुनिया भर में 122 ब्रांच खुल गई थीं। अब कंपनी जूते के साथ-साथ मोजे, टायर और अन्य प्रोडक्ट भी बनाने लगी थी। धीरे-धीरे बाटा ग्रुप में इसका रूपांतरण हो गया।
2. भारत में बाटा का प्रवेश
भारत आने की कहानी
1920 के दशक में टॉमस बाटा ब्रिटिश भारत दौरे पर आए। यहाँ उन्होंने देखा कि अधिकांश लोग नंगे पांव हैं, साथ ही यहाँ रबर, लेदर और मजदूरी सस्ती थी। उन्होंने भारत में कारोबार शुरू करने का निर्णय लिया और 1931 में 'Bata Shoe Company Private Limited' की स्थापना कोलकाता के पास बातानगर में की। यही भारत का पहला विनिर्माण केंद्र बना।
1930 के दशक में ब्रिटिश सेना के लिए जूते अधिकतर जापान से आयात किए जाते थे, मगर बाटा के आने के बाद भारत में जूता व्यवसाय का नया युग शुरू हुआ।
बाटा नगर -जूतों का शहर
यह बिजनेस चल निकला और बाटा नगर नाम से पूरी कॉलोनी बस गई। मांग इतनी बढ़ी कि हर हफ्ते करीब 4,000 जूते बिकने लगे। कंपनी ने स्थानीय मौसम और जरूरत को समझकर ऐसे जूते बनाए जो भारतीयों के लिए उपयुक्त थे - जैसे कि कैनवास के टेनिस शूज, जिन्हें स्कूलों में पीटी के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
3. कंपनी का विकास और विस्तार
ब्रांड के धरोहर
बाटा ब्रांड ने भारत में लगभग 35% बाजार हिस्सेदारी प्राप्त की है। कंपनी ने देश के तापमान और संस्कृति के अनुसार विभिन्न वेरायटी और स्टाइल के जूते बाजार में उतारे। भारत में 500 से अधिक शहरों में इसकी उपस्थिति है। वर्तमान में 8,000 से अधिक कर्मचारी भारतीय इकाई में कार्यरत हैं और लगभग 1,375 रिटेल आउटलेट हैं। हर साल कंपनी 5 करोड़ से अधिक जूते बेचती है।
अन्य देशों में विस्तार
वैश्विक स्तर पर बाटा के 70 से अधिक देशों में 5,300 स्टोर्स हैं और 30,000 से अधिक कर्मचारी कार्यरत हैं। कंपनी ने तीन मुख्य यूनिट्स बनाई हैं – बाटा, बाटा इंडस्ट्रियल्स (सुरक्षा जूते) और एडब्ल्यू लैब (स्पोर्ट्स स्टाइल)।
4. व्यवसाय मॉडल और मार्केटिंग
बाटा का बिजनेस मॉडल बेहद सशक्त है। कंपनी कम कीमत, मजबूत व गुणवत्ता वाले जूते देती है। कर्मचारियों को कंपनी की ग्रोथ में भागीदारी दी जाती थी तथा मुनाफे में हिस्सेदारी का सिस्टम शुरुआती दौर में ही शुरू हो चुका था। मार्केटिंग के लिए बाटा ने “99 पर ख़त्म होने वाले दाम” पेश किए - जैसे कि ₹199, ₹299, जो ग्राहकों का आकर्षण बढ़ाती थी।
आज भी बाटा भारत के साथ-साथ अफ्रीका, एशिया, मिडिल ईस्ट, यूरोप, अमेरिका आदि बाजारों में मजबूत ब्रांड के रूप में स्थापित है।
फ्रेंचाइजी मॉडल
बाटा का फ्रेंचाइजी मॉडल भी लोकप्रिय है, जिसमें 20-30% तक का प्रॉफिट मार्जिन मिलता है। ब्रांड की लोकप्रियता, बिजनेस सपोर्ट, उत्पाद मांग, ट्रेनिंग, इन्वेंट्री मैनेजमेंट आदि से नया कारोबारियों को फायदा होता है।
5. सामाजिक और सांस्कृतिक प्रभाव
बाटा ने सालों तक भारत के क्लासरूम की पहचान बने सफेद टेनिस शूज, स्कूल शूज, सैंडल, स्लीपर और ऑफिस शूज देकर देश के हर वर्ग को जोड़ा। ‘बाटा’ आज एक ब्रांड नहीं, एक भरोसा और परंपरा है। भारतीयों ने इसे अपने देशी उत्पाद की तरह अपनाया है।
कई बार लोगों को यह भी समझ नहीं आता कि ये भारतीय कंपनी नहीं है, लेकिन इसकी पहचान भारत में इतनी गहरी है कि यह हर वर्ग की पहली पसंद रही है।
6. चुनौतियां और नवाचार
बाटा के सामने स्थानीय ब्रांड्स जैसे पैरागॉन से प्रतिस्पर्धा की चुनौती आई, लेकिन कंपनी ने नवाचार, मार्केटिंग और प्रोडक्ट क्वालिटी पर ध्यान देकर अपनी स्थिति मजबूत की। टिटनेस से बचाव के लिए जूता पहनने का अभियान भी चलाया गया, जिससे कंपनी की सेल्स बढ़ गई।
कंपनी ने समय के साथ एडिडास और अन्य ब्रांड्स से साझेदारी कर स्पोर्ट्स फुटवियर और स्पोर्ट्सवियर में भी खुद को मजबूत बनाया। मार्केट की जरूरत अनुसार, समय-समय पर अपनी इकाइयों व स्टोर्स को अपग्रेड किया।
7. उत्पाद रेंज
बाटा के पोर्टफोलियो में 20 से ज्यादा ब्रांड हैं – बाटा, नॉर्थ स्टार, बाटा 3डी, कैट, क्लेयर, मैरी आदि। इन ब्रांड्स के तहत सैंडल, फ्लिप-फ्लॉप्स, स्पोर्ट्स शूज, स्कूल शूज, ऑफिस वियर, बूट्स की विशाल रेंज उपलब्ध है।
8. वर्तमान स्थिति और भविष्य की योजनाएं
आज, बाटा का मुख्यालय स्विट्ज़रलैंड के लौजेन शहर में है। भारत में, कंपनी सार्वजनिक हो गई है और इसका नाम “बाटा इंडिया लिमिटेड” है। भारत में यह सबसे बड़ा फुटवियर रिटेलर बन चुका है।
कंपनी हर सीजन नए डिज़ाइन और प्रोडक्ट्स बाजार में लाती है। साथ ही डिजिटल मार्केटिंग, ऑनलाइन सेल्स, स्टोर अपग्रेड और फ्रेंचाइजी नेटवर्क के माध्यम से कंपनी अपना विस्तार कर रही है।
भारतीय बाजार में बाटा की प्रतिस्पर्धा
भारतीय फुटवियर बाजार में बाटा एक प्रमुख कंपनी है, लेकिन इसे मजबूत प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। आइए देखें प्रमुख प्रतिस्पर्धी और बाजार की स्थिति:
प्रमुख प्रतिस्पर्धी कंपनियां
- Metro Brands:- तेजी से विस्तार कर रही है, मजबूत मार्केटिंग और रिटेल नेटवर्क के साथ
- Relaxo Footwears:- किफायती और बड़े वॉल्यूम वाले प्रोडक्ट्स के लिए लोकप्रिय
- Campus Activewear:-युवा पीढ़ी को ध्यान में रखते हुए स्पोर्ट्स और कैज़ुअल फुटवियर में फोकस.
- Liberty Shoes, Red Tape, Khadim India, Lehar Footwears, Sreeleathers:- अलग-अलग सेगमेंट्स में सक्रिय, ब्रांड पहचान और मूल्य-निर्धारण के माध्यम से प्रतिस्पर्धा कर रहे
निष्कर्ष
बाटा कंपनी की शुरुआत एक साधारण, गरीब परिवार के संघर्ष से हुई थी। आज यह न सिर्फ भारत, बल्कि दुनियाभर में फुटवियर इंडस्ट्री की अग्रणी कंपनी है। इसके किसी स्टोर पर जाने वाले लाखों ग्राहक ही बाटा की सफलता की कहानी हैं। अपने कर्मचारियों को हिस्सा देना, कम कीमत में अच्छा उत्पाद देना, लोकल मार्केट की जरूरतें समझकर प्रोडक्ट डिजाइन करना,यही बाटा की सफलता का मूल मंत्र है।
बाटा भारतीय नहीं है, लेकिन हर भारतीय के दिल में है। इसकी कहानी एक आदर्श है कि सच्चे नवाचार, दृढ़ मेहनत और ग्राहक-केन्द्रित दृष्टिकोण से कैसे कोई ब्रांड, एक देश की पहचान बन जाता है।
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