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शुक्रवार, 29 अगस्त 2025

मेजर ध्यानचंद:-हॉकी के 'जादूगर

मेजर ध्यानचंद:-हॉकी के जादूगर


मेजर ध्यानचंद का नाम भारतीय हॉकी के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। उनका जन्म 29 अगस्त 1905 को इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ, और वे गरीब सैनिक परिवार के थे। उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में सेना में कार्यरत रहते हुए हॉकी खेलना शुरू किया और भारतीय फील्ड हॉकी के 'जादूगर' बन गए

प्रारंभिक जीवन व शिक्षा

ध्यानचंद के पिता ब्रिटिश सेना में थे, जिससे परिवार का लगातार स्थानांतरण होता था। कई बार स्कूल बदलने के बाद उन्होंने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली ,ध्यान सिंह के पिता ब्रिटिश सेना में थे. वह हॉकी के शौकीन थे. पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ध्यान सिंह महज 16 साल की उम्र में बतौर सिपाही सेना में शामिल हो गए. उन्होंने भी सेना में सेवा देते हुए हॉकी खेलना शुरू कर दिया. ध्यान सिंह के दोस्त उन्हें 'चंद' कहकर पुकारते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि ध्यान सिंह ड्यूटी के बाद अक्सर चांदनी रात में घंटों हॉकी की प्रैक्टिस किया करते थे. ऐसे में उनका नाम 'ध्यानचंद' पड़ गया

हॉकी करियर की शुरुआत

मेजर ध्यानचंद ने हॉकी खेलना अपनी सेना में भर्ती होने के बाद शुरू किया था। 16 वर्ष की उम्र में वे दिल्ली में "फर्स्ट ब्राह्मण रेजिमेंट" में एक साधारण सैनिक के रूप में भर्ती हुए थे। उस समय तक उनके मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष रुचि नहीं थी। हॉकी खेलने के लिए प्रेरणा मिलना उन्हें सेना के एक सूबेदार मेजर तिवारी से हुआ, जो स्वयं हॉकी के प्रेमी और खिलाड़ी थे। मेजर तिवारी की देख-रेख में ध्यानचंद ने हॉकी खेलना सीखा और अभ्यास करना शुरू किया
ध्यानचंद ने 1922 से 1926 तक सेना की प्रतियोगिताओं में हॉकी खेलकर अनुभव और पहचान बनाई। हॉकी के प्रति उनकी मेहनत और लगन ऐसी थी कि वे ड्यूटी के बाद कई घंटे चांदनी रात में अभ्यास किया करते थे

ध्यानचंद का ओलंपिक्स प्रदर्शन

ध्यानचंद ने 1928 के ऐम्स्टर्डम ओलंपिक्स में भारत के हॉकी डेब्यू में 14 गोल किए, जिसमें भारत ने अपना पहला स्वर्ण पदक जीता। उनके ये प्रदर्शन इतने विस्मयकारी थे कि नीदरलैंड की सरकार ने उनके स्टिक को यह जांचने के लिए तोड़ दिया कि उसमें कोई चुंबक तो नहीं है। इसके बाद 1932 लॉस एंजिल्स और 1936 बर्लिन ओलंपिक्स में उन्होंने टीम का नेतृत्व किया और भारत ने लगातार तीसरी बार स्वर्ण पदक जीता। खास बात यह थी कि 1936 के फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराया और ध्यानचंद ने उस मैच में तीन गोल किए, जो आज भी हॉकी इतिहास के सबसे यादगार प्रदर्शन माने जाते हैं।

हॉकी का जादूगर

ध्यानचंद के खेल कौशल, गोल स्कोरिंग की क्षमता और मैदान पर जादुई नियंत्रण के कारण उन्हें हॉकी के जादूगर के नाम से पुकारा गया। उन्होंने भारत को विश्व स्तर पर हॉकी का दिग्गज देश बनाया और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाता है। भारत में कई जगह उनके नाम पर स्मारक और टूर्नामेंट आयोजित होते हैं।ध्यानचंद की हॉकी स्टिक को देखकर कई बार लोगों ने शक किया कि उसमें चुंबक या गोंद लगा है, क्योंकि वे इतनी बेहतरीन ड्रिब्लिंग करते थे कि उनकी मुकाबला करने वाली टीम के खिलाड़ी भी डरी हुई होती थीं। उनकी हॉकी की कला इतनी प्रभावशाली थी कि जर्मनी के बादशाह रुडोल्फ हिटलर ने उन्हें जर्मनी के लिए खेलने का ऑफर दिया, लेकिन ध्यानचंद ने हमेशा भारत के लिए खेलने को गौरव माना।

ध्यानचंद ने अपने करियर में 500 से अधिक गोल किए और हॉकी की दुनिया में वह एक ऐसा नाम है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। 

ध्यानचंद और 1936 बर्लिन ओलंपिक

1936 के बर्लिन ओलंपिक में मेजर ध्यानचंद की कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम ने शानदार प्रदर्शन किया था। उस साल भारतीय टीम ने 5 मैच खेले और कुल 38 गोल किए, जबकि केवल एक गोल ही खाया। फाइनल में भारत ने जर्मनी को 8-1 से हराकर स्वर्ण पदक अपने नाम किया। ध्यानचंद ने इस टूर्नामेंट में जबरदस्त ड्रिब्लिंग और गोलिंग के कारनामे दिखाए, जिससे जर्मन तानाशाह एडोल्फ हिटलर सहित वहां के दर्शक उनके खेल के कायल हो गए।

हिटलर ने मैच के बाद ध्यानचंद को मिलने का प्रस्ताव रखा और उन्हें जर्मनी की सेना में बड़ा पद देने का भी ऑफर दिया। लेकिन ध्यानचंद ने विनम्रतापूर्वक इस ऑफर को ठुकरा दिया, क्योंकि उनके लिए देश की सेवा और भारतीय टीम के लिए खेलना सर्वोपरि था। हिटलर की पार्टी में ध्यानचंद शामिल नहीं हुए और उन्होंने टीम के साथ खेल गांव में बैठकर राष्ट्रीय ध्वज न होने के कारण अपने दिल में एक पीड़ा भी जताई।

ध्यानचंद अपने करियर में इस आखिरी ओलंपिक में भी अविश्वसनीय खेल दिखाते हुए चार गोल बनाए थे। उनके दांत भी एक टकराव में टूट गए, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मैदान पर जूते उतारकर और तेजी से खेलने लगे। इस ओलंपिक ने भारतीय हॉकी को विश्व में दुनिया का सर्वश्रेष्ठ साबित किया और ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर बनाकर इतिहास में अमर कर दिया।

राष्ट्रीय खेल दिवस

राष्ट्रीय खेल दिवस हर साल 29 अगस्त को मनाया जाता है। इस दिन को मेजर ध्यानचंद की जयंती के रूप में चुना गया है

मेजर ध्यानचंद को हॉकी का जादूगर कहा जाता है और उन्होंने हॉकी को भारत में विश्व स्तर पर शीर्ष पर पहुँचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस दिन का उद्देश्य खेलों को बढ़ावा देना, फिटनेस और स्वस्थ जीवनशैली की जागरूकता फैलाना, खेल प्रतिभाओं को सम्मानित करना और युवाओं को खेलों के प्रति प्रेरित करना है। भारत सरकार ने 2012 से मेजर ध्यानचंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया था।

उपलब्धियाँ और सम्मान

  • भारत सरकार ने 1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया।
  • उनके नाम पर भारत में सबसे बड़े खेल सम्मान "मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार" 2002 से दिया जाता है, जो खिलाड़ियों के जीवनभर के योगदान के लिए दिया जाता है।
  • राष्ट्रीय खेल दिवस 29 अगस्त को मेजर ध्यानचंद की जयंती पर मनाया जाता है।
  • ध्यानचंद लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार भी उनके नाम पर स्थापित था, जिसे अब अर्जुन लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार में बदलाव किया गया है।
  • उनके योगदान को देखते हुए कई बार भारत रत्न पुरस्कार देने की मांग हुई है, लेकिन यह सम्मान अभी तक उन्हें नहीं मिला है

निष्कर्ष

 मेजर ध्यानचंद भारत के महान हॉकी खिलाड़ी और 'हॉकी के जादूगर' के रूप में विश्व प्रसिद्ध थे। उन्होंने तीन ओलंपिक (1928, 1932, 1936) में भारत को स्वर्ण पदक जिताकर देश का मान बढ़ाया। उनकी अद्भुत हॉकी क्षमता, खेल में उत्कृष्टता और देश के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय खेल इतिहास में अनमोल स्थान दिलाया। मेजर ध्यानचंद की उपलब्धियां आज भी देश के युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं और हर वर्ष उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। उनका जीवन और खेल कौशल हमें सिखाता है कि समर्पण और लगन से कोई भी लक्ष्य हासिल किया जा सकता है।

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