गुरुवार, 14 अगस्त 2025

सर सैय्यद अहमद खान -भारत विभाजन(1947) के लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति

सर सैय्यद अहमद खान -भारत विभाजन(1947) के लिए एक जिम्मेदार व्यक्ति:-

भूमिका:-

सर सैयद अहमद ख़ान (1817-1898) को आधुनिक भारतीय मुस्लिम समाज का अग्रदूत और 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' (Two Nation Theory) का प्रवर्तक माना जाता है। उन्होंने ब्रिटिश भारत में मुस्लिम समुदाय के सामाजिक और शैक्षिक उत्थान की नींव रखी, जो बाद में विभाजन 1947 के ऐतिहासिक निर्णय की आधारशिला बनी!

सर सैयद अहमद ख़ान का जन्म 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली, मुग़ल साम्राज्य में हुआ था। वे 19वीं सदी के सबसे प्रख्यात मुस्लिम सुधारक और दार्शनिक थे।सैयद अहमद ख़ान का जन्म एक संपन्न और कुलीन परिवार में हुआ था, जिसके मुग़ल दरबार से घनिष्ठ संबंध थे। उन्होंने क़ुरान और विज्ञान की शिक्षा प्राप्त की थी।

विभाजन के जनक:-

यह सर सैयद अहमद ख़ान ने हिंदू-मुस्लिम एकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया था, लेकिन 1857 के विद्रोह और 'हिंदी-उर्दू विवाद' के बाद उनकी सोच बदल गई।  उन्होंने महसूस किया कि दोनों समुदाय धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से अत्यंत भिन्न हैं।  इसी आधार पर उन्होंने 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' का विचार प्रस्तुत किया कि मुसलमान और हिंदू दो अलग-अलग राष्ट्र हैं।

सर सैयद अहमद ख़ान ने मुसलमानों के अधिकारों, अलग पहचान और राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर बल दिया।  यही विचार बाद में मुस्लिम लीग और पाकिस्तान के आन्दोलन की बुनियाद बनी। कांग्रेस ही विभाजन के लिए ज़िम्मेदार थी, ग़लत है। विभाजन का सिद्धांत 1887 में वापस जाता है जब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के संस्थापक सर सैयद अहमद खान ने घोषणा की थी कि हिंदू और मुसलमान दो अलग-अलग राष्ट्र हैं। 1933 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के एक विद्वान चौधरी रहमत अली ने 'पाकिस्तान' शब्द गढ़ा था। मोहम्मद अली जिन्ना ने अपने जीवन के अंतिम दो दशक एक स्वतंत्र पाकिस्तान के अपने सपने को साकार करने में लगा दिए। यह एक अलग कहानी है कि 1947 में जो पाकिस्तान उभरा, वह उनके सपनों का एक छोटा सा रूप था। "या तो हमारे पास एक विभाजित भारत होगा या एक नष्ट भारत," जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन डे पर गरजते हुए कहा।

ब्रिटिश राज और मुस्लिम राजनीति:-

सर सैयद ने मुसलमानों को ब्रिटिश राज के प्रति सहयोग की सलाह दी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल होने से बचने को कहा। उनका मानना था कि मुसलमानों को शिक्षा और सरकारी नौकरियों के जरिए अपनी सामर्थ्य बढ़ानी चाहिए ताकि वे हिंदू बहुसंख्यक से राजनीतिक दबाव में न रहें।अलिगढ़ आंदोलन के माध्यम से उन्होंने मुस्लिम समाज में आधुनिक शिक्षा के प्रसार को बढ़ावा दिया जिससे मुस्लिम समुदाय में जागरूकता और आत्मविश्वास का संचार हुआ।

भारत विभाजन की पृष्ठभूमि:-

विभाजन के मूल कारणों में मुस्लिम समुदाय में हिंदू वर्चस्व का भय, मुस्लिम लीग की राजनीति और कॉंग्रेस-लीग के बीच बढ़ती दूरी प्रमुख थे।

सर सैयद अहमद ख़ान का 'दो-राष्ट्र सिद्धांत' 1947 में पाकिस्तान सृजन के औचित्य का प्रमुख तर्क बना! उन्होंने मुस्लिम समाज में यह भावना जगाई कि भारतीय राजनीति में मुसलमानों को स्वतंत्र रूप से संगठित होना चाहिए; वे हमेशा हिंदू बहुसंख्यक के अधीन नहीं रह सकते। इसी आधार पर बाद में मुस्लिम लीग बनी, जिसने आगे चलकर विभाजन की मांग को मजबूती दी।

सैयद अहमद खान व्यक्तिगत रूप से पाकिस्तान या देश के टुकड़े का हिमायती नहीं थे, लेकिन उनके विचारों के कारण बाद के मुस्लिम नेताओं ने ‘अलग राज्य’ की मांग की। उनका मुख्य उद्देश्य मुसलमानों की राजनीतिक, शैक्षणिक और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना था।

मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज का इतिहास:-

मुहम्मदन एंग्लो-ओरिएंटल कॉलेज (Muhammadan Anglo-Oriental College) की स्थापना सर सैय्यद अहमद खान ने 1875 में अलीगढ़ में की थी इसकी स्थापना भारतीय मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा,विज्ञान और अंग्रेजी भाषा की समझ विकसित करने के उद्देश्य से की गई थी, ताकि वे ब्रिटिश भारत की प्रशासनिक और सार्वजनिक सेवाओं में बराबरी से भाग ले सकें।

यह कॉलेज भारतीय मुस्लिम समाज के लिए एक जागरण आंदोलन (अलीगढ़ मूवमेंट) का केंद्र बन गया। इसी आंदोलन की वजह से आगे चलकर 1920 में इस कॉलेज को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में परिवर्तित कर दिया गया.

निष्कर्ष:-

सर सैयद अहमद ख़ान आधुनिक भारतीय मुस्लिम समाज के सच्चे मार्गदर्शक थे: उन्होंने शिक्षा, राजनीतिक जागरूकता और मुस्लिम अस्मिता के लिए जीवन भर संघर्ष किया।

'दो-राष्ट्र सिद्धांत' का सूत्रपात कर उन्होंने मुस्लिम समाज को आत्मनिर्भर सोच दी, जिसका सही-गलत मूल्यांकन आज भी जारी है।

विभाजन 1947 के संदर्भ में उनकी भूमिका को न तो पूरी तरह श्रेय दिया जा सकता है, न उसकी अनदेखी की जा सकती है,वह प्रेरणा का स्रोत और मुस्लिम पुनर्जागरण के अग्रदूत हैं।



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