सोमवार, 8 सितंबर 2025

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस

www.sikhnazarurihai.com

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस हर साल 8 सितंबर को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत यूनेस्को ने 1966 में की थी, इसका उद्देश्य दुनिया भर में साक्षरता के महत्व को उजागर करना और अधिक से अधिक लोगों को पढ़ने-लिखने के लिए प्रेरित करना है, क्योंकि साक्षरता एक मौलिक मानव अधिकार है और यह समाज के सतत विकास की नींव मानी जाती है। यह दिन शिक्षा के माध्यम से व्यक्तिगत, सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने का संदेश देता है

अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस का इतिहास:-

  • 1965 में तेहरान में शिक्षा मंत्रियों के सम्मेलन में निरक्षरता उन्मूलन की चर्चा हुई।
  • 1966 में यूनेस्को ने 8 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस के रूप में आधिकारिक रूप से घोषित किया।
  • पहली बार यह दिन 8 सितंबर 1967 को पूरे विश्व में मनाया गया 
महत्व और उद्देश्य:-
  • साक्षरता को एक मौलिक मानवाधिकार और सम्मान के रूप में स्थापित करना।
  • लोगों को पढ़ने-लिखने के कौशल से लैस करना ताकि वे आर्थिक, सामाजिक, और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बन सकें।
  • सामाजिक विकास, लैंगिक समानता, और शांति को बढ़ावा देना।
  • आज के डिजिटल युग में डिजिटल साक्षरता को भी बढ़ावा देना, ताकि सभी लोग नई तकनीकों का सही उपयोग कर सकें।
  • वैश्विक स्तर पर साक्षरता दर बढ़ाने और शिक्षा के अवसर सभी तक पहुंचाने के लिए जागरूकता फैलाना
साक्षरता का अर्थ और इसके प्रकार:-

साक्षरता का अर्थ है पढ़ने, लिखने और समझ के साथ गणना करने की योग्यता। यह केवल अक्षर ज्ञान ही नहीं, बल्कि डिजिटल साक्षरता, वित्तीय साक्षरता आदि जैसे महत्वपूर्ण जीवन कौशलों को भी शामिल करता है। सरल शब्दों में, साक्षर व्यक्ति वह होता है जो किसी भाषा को पढ़ और लिख सकता है तथा समझ सकता है।

साक्षरता के प्रमुख प्रकार हैं:-
  • पठनीय और लिखनीय साक्षरता - पढ़ने और लिखने की मूल क्षमता।
  • संख्यात्मक साक्षरता - गणितीय या संख्याओं को समझने और प्रयोग करने की क्षमता।
  • डिजिटल साक्षरता - कंप्यूटर, इंटरनेट और अन्य डिजिटल उपकरणों का उपयोग करने की योग्यता।
  • वित्तीय साक्षरता - आर्थिक और वित्तीय विषयों को समझने और प्रबंधित करने की क्षमता।
  • स्वास्थ्य साक्षरता - स्वास्थ्य संबंधी जानकारी को समझने और सही निर्णय लेने की योग्यता।
  • मीडिया साक्षरता - मीडिया संदेशों को समझने और उनका विश्लेषण करने की क्षमता।
  • सांस्कृतिक साक्षरता - विभिन्न सांस्कृतिक अवधारणाओं और संदर्भों को समझने की योग्यता।
  • भावनात्मक/शारीरिक साक्षरता - अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझने और व्यक्त करने की क्षमता।
वर्ष 2025 की थीम: "डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना":-

 "डिजिटल युग में साक्षरता को बढ़ावा देना"। यह थीम अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस 2025 की है, इस वर्ष की थीम डिजिटल युग में लोगों को आवश्यक डिजिटल कौशलों से लैस करने, डिजिटल विभाजन को कम करने और सभी के लिए डिजिटल शिक्षा और साक्षरता को सुलभ बनाने पर ज़ोर देती है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि तकनीकी प्रगति के साथ सभी व्यक्तियों को डिजिटल दुनिया का हिस्सा बनने और उसमें सक्रिय रूप से भाग लेने का अधिकार मिले। साथ ही यह थीम समावेशन, आजीवन शिक्षा, और डिजिटल सशक्तिकरण को बढ़ावा देती है ताकि समाज अधिक न्यायसंगत और समान बने।

विश्व और भारत में साक्षरता की स्थिति:-

विश्व में साक्षरता की स्थिति (2025)
  • वैश्विक औसत साक्षरता दर लगभग 86.8% है।
  • कुछ देशों जैसे अंडोरा, फिनलैंड, नॉर्वे में साक्षरता दर 100% है।
  • विश्व में लगभग 739 मिलियन युवा और वयस्क अभी भी बुनियादी साक्षरता से वंचित हैं।
  • विश्व में कई विकसित देश शिक्षा में दशकों के निवेश के कारण उच्च साक्षरता दर प्राप्त कर चुके हैं।
भारत में साक्षरता की स्थिति (2025)
  • भारत की कुल साक्षरता दर लगभग 80.9% है।
  • पुरुष साक्षरता दर लगभग 87.2% जबकि महिला साक्षरता दर लगभग 74.6% है, जिसमें लैंगिक अंतर मौजूद है।
  • ग्रामीण क्षेत्रों में साक्षरता दर लगभग 77.5% है जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 88.9% तक है।
  • भारत के कुछ राज्य जैसे मिजोरम (98.2%), लक्षद्वीप (97.3%) और केरल (95.3%) में साक्षरता दर बहुत उच्च है, जबकि बिहार (74.3%), मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में साक्षरता दर कम है।
  • भारत की साक्षरता दर विश्व औसत से थोड़ी कम है, लेकिन पिछले दशकों में इसमें निरंतर सुधार हुआ है।
प्रमुख चुनौतियाँ और अंतर:-
  • भारत में अभी भी लैंगिक साक्षरता अंतर और ग्रामीण-शहरी साक्षरता में भेद्यता है।
  • कई गरीब देशों और भारत के कुछ राज्यों में निरक्षरता की समस्या बनी हुई है।
  • विश्व स्तर पर भी निरक्षर व्यक्तियों का बड़ा अनुपात अभी भी शिक्षा की मुख्य चुनौतियों में से एक है।
साक्षरता में सुधार के लिए सामुदायिक और व्यक्तिगत कदम:-
सामुदायिक स्तर के कदम
  • समुदाय में स्वयंसेवा करके ट्यूटर या मार्गदर्शक बनें, जिससे अनपढ़ या कम पढ़े-लिखे लोगों को शिक्षा में मदद मिल सके।
  • साक्षरता योजनाओं के लिए दान करें या इनके वित्तपोषण में सहायता प्रदान करें।
  • स्थानीय संगठनों, स्कूलों और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के साथ मिलकर साक्षरता बढ़ाने वाले कार्यक्रमों का आयोजन करें।
  • समुदाय में जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाएं और साक्षरता को सामाजिक विकास से जोड़ें।
  • डिजिटल साक्षरता के लिए ग्रामीण इलाकों में प्रशिक्षण और संसाधन उपलब्ध कराएं।
  • विभिन्न शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करके और साझेदारी बढ़ाकर समाज में समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करें।
  • स्वास्थ्य साक्षरता को भी बढ़ावा देकर जनता के स्वास्थ्य ज्ञान और स्वास्थ्य संबंधी निर्णय क्षमता में सुधार करें।
व्यक्तिगत स्तर के कदम:-
  • स्वयं साक्षरता शिक्षा प्राप्त करें और निरंतर अपनी जानकारी को बढ़ाते रहें।
  • बच्चों और परिवार के सदस्यों के पढ़ने-लिखने में सहायता करें, उनसे संवाद और पढ़ाई को बढ़ावा दें।
  • उपलब्ध शैक्षिक ऐप्स और डिजिटल टूल्स का उपयोग करके सीखने के अवसर बढ़ाएं।
  • स्वस्थ संचार के लिए सरल भाषा और स्पष्ट संदेश का प्रयोग करें।
  • बच्चों और स्वयं के लिए नियमित पढ़ाई और अभ्यास की आदत डालें।
  • स्वयं शिक्षा के लिए स्थानीय पुस्तकालयों और सामुदायिक शिक्षण केंद्रों का लाभ उठाएं।
यूनेस्को और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रयास:-

यूनेस्को और अन्य अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने साक्षरता को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। यूनेस्को ने 1946 से साक्षरता के लिए काम करना शुरू किया है, जो इसे शिक्षा के अधिकार के रूप में देखता है और इसका मानना है कि साक्षरता से व्यक्ति सशक्त बनता है। यूनेस्को का साक्षरता कार्यक्रम समुदायों में जीवन भर की सीख और डिजिटल साक्षरता को भी शामिल करता है, खासकर महिलाओं और युवाओं के लिए। इसके अलावा, यूनेस्को अंतरराष्ट्रीय साक्षरता पुरस्कार देता है जो उत्कृष्ट और नवीन कार्यक्रमों को पहचानता है और प्रोत्साहित करता है। इसके अलावा, ग्लोबल अलायंस फॉर लिटरेसी जैसे गठबंधन 31 देशों को साथ लेते हुए युवाओं और वयस्कों की साक्षरता सुधारने के लिए काम करते हैं।
यूनेस्को के प्रमुख साक्षरता प्रयास:-
  • साक्षरता को शिक्षा का मूल अधिकार मानना और इसके लिए रणनीतियाँ विकसित करना।
  • स्कूल बंदी जैसे संकटों के दौरान भी साक्षरता का संरक्षण।
  • डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना ताकि लोग तकनीकी युग में सूचनाओं के साथ बेहतर जुड़ सकें।
  • महिलाओं और लड़कियों के साक्षरता स्तर को सुधारने के लिए विशेष पहल, जैसे लिटरेसी इनिशिएटिव फॉर एम्पॉवरमेंट 
  • हर वर्ष अंतरराष्ट्रीय साक्षरता दिवस मनाना और श्रेष्ठ साक्षरता कार्यक्रमों के लिए पुरस्कार प्रदान करना।
अंतरराष्ट्रीय संगठनों के प्रयास:-

अंतरराष्ट्रीय संगठन जैसे गेट्स फाउंडेशन भी विशेष शिक्षा अभियानों और तकनीकी मदद से साक्षरता बढ़ाने में सक्रिय हैं। ये प्रयास शिक्षा को समावेशी, गुणवत्तापूर्ण और जीवन पर्यंत सीखने के अवसर प्रदान करने की दिशा में हैं 
  • गेट्स फाउंडेशन जैसे गैर-सरकारी संगठन अफ्रीका, भारत आदि क्षेत्रों में पढ़ाई-लिखाई बढ़ाने पर काम करते हैं।
  • ग्लोबल कोएलिशन फॉर फाउंडेशनल लर्निंग जैसे गठबंधन बच्चों की पढ़ाई को बेहतर बनाने के लिए कई संसाधनों और कार्यक्रमों में सहयोग करते हैं।
  • वैश्विक और स्थानीय स्तर पर साक्षरता बढ़ाने के लिए नीति निर्माण, धन जुटाना, जागरूकता फैलाना और तकनीकी सहायता प्रदान करना।
महिला साक्षरता और लैंगिक समानता:-

महिला साक्षरता और लैंगिक समानता के बीच गहरा संबंध है। भारत में महिला साक्षरता दर पिछले कुछ दशकों में सुधार हुई है, लेकिन पुरुषों की तुलना में अभी भी कम है। इस असमानता का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक कारण है, जैसे कि पारंपरिक सोच, शिक्षा के प्रति परिवारिक दृष्टिकोण, जल्दी विवाह, और शिक्षा के संसाधनों की कमी।

महिला साक्षरता की स्थिति:-
  • भारत में महिला साक्षरता दर में सुधार हो रहा है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों और पिछड़े वर्गों में यह दर अभी भी कम है।
  • केरल, लक्षद्वीप और मिजोरम जैसे राज्यों में महिला साक्षरता दर उच्च है, जबकि बिहार और राजस्थान में कम है।
  • महिला साक्षरता का बढ़ना सामाजिक विकास, स्वास्थ्य सुधार, कम जन्म दर और बच्चों की शिक्षा में वृद्धि से जुड़ा है।
लैंगिक समानता का महत्व:-
  • लैंगिक समानता वास्तविक महिला सशक्तिकरण और सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती है।
  • सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर लैंगिक समानता से हिंसा में कमी, बेहतर सामाजिक समावेश और सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन संभव होता है।
  • आर्थिक स्तर पर, महिलाओं की समान भागीदारी से विकास, नवाचार और आर्थिक समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • राजनीतिक स्तर पर, महिला नेतृत्व से नीतियां अधिक समावेशी और प्रभावी बनती हैं।
महिला साक्षरता और लैंगिक समानता के लिए उपाय:-
  • शिक्षा के लिए समान अवसर प्रदान करना, विशेषकर लड़कियों के लिए।
  • 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' और 'समग्र शिक्षा योजना' जैसी सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन।
  • ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में शिक्षा की पहुंच बढ़ाना।
  • आर्थिक व सामाजिक बाधाओं को कम करना और परिवारों में शिक्षा के प्रति जागरुकता बढ़ाना
निष्कर्ष:-
अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस केवल पढ़ने-लिखने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर क्षेत्र में शिक्षा और कौशल विकास के माध्यम से व्यक्ति और समाज के समग्र विकास का पर्व है। 2025 की थीम डिजिटल युग में नयी चुनौतियों और अवसरों के बीच इस महत्व को और भी बढ़ा देती है। यह दिन शिक्षा के माध्यम से समानता, शांति और सतत विकास के लिए आवश्यक कौशलों को बढ़ावा देने का संदेश देता है।

रविवार, 7 सितंबर 2025

भूपेन हजारिका

भूपेन हजारिका:-

www.sikhnazarurihai.com

भूपेन हजारिका भारत के पूर्वोत्तर राज्य असम के महान गीतकार, संगीतकार, गायक, कवि, फिल्म निर्माता और लेखक थे, जिन्हें भारतीय संस्कृति का अमूल्य धरोहर माना जाता है

भूपेन हजारिका का जन्म 8 सितंबर 1926 को असम के तिनसुकिया जिले के सदिया गाँव में हुआ था उनके पिता का नाम नीलकांत हजारिका और माता का नाम शांतिप्रिया हजारिका था,भूपेन हजारिका बहुभाषी कलाकार थे, जो असमिया, हिंदी, बंगला सहित कई भारतीय भाषाओं में गीत गाते और लिखते रहे

बचपन एवं शिक्षा:-

  • हजारिका को संगीत का पहला परिचय उनकी माता से मिला, जिन्होंने पारंपरिक असमिया संगीत की शिक्षा दी और उनका संगीत के प्रति लगाव जगाया
  • उनकी प्रारंभिक शिक्षा गुवाहाटी और धुबरी के स्कूल से हुई, 13 साल की आयु में तेजपुर हाई स्कूल से मैट्रिक पास किया
  • 1942 में गुवाहाटी के कॉटन कॉलेज से इंटरमीडिएट किया; 1946 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में एम.ए. किया
  • 1949 में भूपेन हजारिका ने कोलंबिया विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क के लिए अमेरिका की यात्रा की जहां उन्होंने 'मास कम्युनिकेशन' विषय में पीएचडी पूरी की
  • 10 साल की उम्र में उन्होंने अपना पहला गीत लिखा और गाया था
  • 12 वर्ष की आयु में असमिया फिल्म 'इंद्रमालती' में गायक के तौर पर काम किया
  • भूपेन हजारिका ने पीएचडी के दौरान अंतर्राष्ट्रीय संगीत और सामाजिक मुद्दों पर गहरा अध्ययन किया तथा अफ्रीकी-अमेरिकी गायक पॉल रॉब्सन से मुलाकात की, जिसने उनके विचारों और गीतों में नया दृष्टिकोण प्रदान किया

असम के सांस्कृतिक दूत के रूप में योगदान:-

डॉ. भूपेन हाजोरिका असम के सांस्कृतिक दूत के रूप में विख्यात हैं, जिन्होंने असम और पूरे उत्तर-पूर्वी भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहचान दिलाई। वे भारतीय संगीत, साहित्य, सिनेमा और सामाजिक चेतना के क्षेत्र में एक महान प्रतिनिधि थे। उनकी गीत-संगीत में असम की प्राकृतिक सुंदरता, विभिन्न जनजातियों की सांस्कृतिक अमूर्तता, और मानवता व समरसता का संदेश प्रमुख था

  • भूपेन हाजोरिका को "बॉर्ड ऑफ ब्रह्मपुत्र" और "सुधाकंठ" के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने असम के विविध जनजातीय समुदायों जैसे कि मिसिंग, कार्बी, बोडो और अन्य उत्तर-पूर्वी राज्यों के लोगों की संस्कृति को अपने गीतों में समाहित किया, जिससे उनके सांस्कृतिक एकीकरण को बल मिला। उन्होंने न केवल असम बल्कि पूरे पूर्वोत्तर क्षेत्र की सांस्कृतिक विविधता को समझने व प्रचारित करने का काम किया
  • उन्होंने सामाजिक समरसता, जनजातीय भाईचारे, और सांस्कृतिक सद्भाव के संदेश को अपने गानों के माध्यम से फैलाया। उनके गीत जैसे "ओ मूर अपनुर देश", "मनुहे मनुहोर बाबे" असम के लोगों के दिलों में प्रेम और पहचान जागृत करते हैं। वे असम की संस्कृति को भारत और विश्व के सम्मुख प्रस्तुत करने वाले एक सशक्त आवाज़ बने 
  • भूपेन हाजोरिका ने कला के माध्यम से समुदायों, भाषाओं और राष्ट्रों के बीच पुल का कार्य किया। उन्होंने असम के बाहर भी असमिया एवं उत्तर-पूर्वी संगीत को हिंदी फिल्म संगीत में प्रसारित किया और देशभर में उसकी प्रसिद्धि बढ़ाई। कला तथा संस्कृति के क्षेत्र में उनके इस योगदान के लिए उन्हें कई राष्ट्रीय पुरस्कार जैसे पद्मश्री, पद्मभूषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार तथा भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया 
  • उनके प्रयासों से असम में विभिन्न जातीय एवं सांस्कृतिक समुदायों के बीच प्रेम और दोस्ती की भावना जगी, जैसे वह अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय आदि के लोगों के बीच सांस्कृतिक सेतु के समान थे। इस प्रकार, वे न केवल असम की सांस्कृतिक पहचान के दूत थे, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर की सांस्कृतिक एकता के प्रतीक भी बने

हजारिका के प्रसिद्ध हिंदी गीत और उनकी हिंदी फिल्में: 

"दिल हूम हूम करे"- फ़िल्म 'रूदाली' (1993) का एक बेहद प्रसिद्ध गीत है, जो भूपेन हजारिका और लता मंगेशकर ने गाया था। इस गीत के हिंदी संस्करण के शब्द गुलज़ार ने लिखे थे।

  • "एक कली दो पत्तियां"
  • "हां आवारा हूं"
  • "गुम सुम" — फ़िल्म 'दमन' में यह गीत भी लोकप्रिय हुआ।
  • "ओ गंगा तू बहती है क्यों" — एक प्रसिद्ध भजन जो भूपेन ने संगीतबद्ध और गाया।
  • "समय ओ धीरे चलो" — 'रूदाली' फिल्म का एक अन्य मशहूर गीत।
  • "बदलों की ओट में" — फ़िल्म 'क्यों?'

हिंदी फ़िल्मों में भूपेन हजारिका का योगदान:-

उन्होंने हिंदी फिल्मों में गायक, संगीतकार और निर्देशक के रूप में काम किया। कुछ प्रमुख फिल्मों में शामिल हैं:

  • 'स्वीकृति'
  • 'एक पल'
  • 'सिराज'
  • 'प्रतिमूर्ति'
  • 'दो राहें'
  • 'साज'
  • 'गजगामिनी'
  • 'दमन: आ विक्टिम ऑफ़ मैरिटल वायलेन्स'
  • 'क्यों?'
  • 'चिंगारी'
  • 'आरोप'
  • 'तितास एकटि नदीर नाम'
  • उन्होंने 'स्वीकृति' और 'सिराज' जैसी फिल्मों का निर्देशन भी किया।
  • भूपेन ने हिंद सिनेमा में सामाजिक और सांस्कृतिक विषयों पर आधारित गीत और संगीत दी।

पुरस्कार, सम्मान व भारत रत्न की उपलब्धि:-

भूपेन हजारिका को उनकी संगीत, साहित्य और सांस्कृतिक उपलब्धियों के लिए कई महत्वपूर्ण पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं। उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सम्मान मिला है, जिनमें प्रमुख हैं:

  • भारत रत्न (2019) — भारत का सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार, जो उन्हें मरणोपरांत दिया गया।

  • पद्म विभूषण (2012)- मरणोपरांत सम्मानित दूसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार।

  • पद्म भूषण (2001)- भारत का तीसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान।

  • पद्म श्री (1977)- चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार।

  • दादा साहब फाल्के पुरस्कार (1992)-सिनेमा के सर्वोच्च सम्मान के रूप में।

  • राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार- सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशन के लिए (1975)
  • संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987)

  • असोम रत्न (2009) — असम का बड़ा सम्मान।

भूपेन हजारिका पर बनी स्मारक, पुल और स्मृति:-

भूपेन हजारिका सेतु (ढोला-सदिया सेतु):-

यह भारत का सबसे लंबा नदी पुल है, जो असम और अरुणाचल प्रदेश को जोड़ता है। यह सेतु 9.15 किलोमीटर लंबा है और लोहित नदी के ऊपर बना है। इसका उद्घाटन 26 मई 2017 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया था। इस पुल के बनने से अरुणाचल प्रदेश और असम के बीच यात्रा का समय 4 घंटे कम हो गया। यह पुल सामरिक रूप से भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारी सैन्य वाहनों और टैंकों को पार करने में सक्षम है। इसकी लागत करीब 2056 करोड़ रुपये आई थी। यह सेतु भूपेन हजारिका के नाम पर इसलिए रखा गया क्योंकि वे असम के सुप्रसिद्ध संगीतकार और सांस्कृतिक दूत थे, जिनका असम और पूरे भारत में गहरा प्रभाव था।

भूपेन हजारिका स्मारक पार्क:-

गुवाहाटी में निजरापुर स्थित डॉ. भूपेन हजारिका मेमोरियल पार्क उनकी जीवन और विरासत को समर्पित एक सुंदर स्मारक स्थल है। यह पार्क उनकी कला, संस्कृति, और संगीत के प्रति सम्मान स्वरूप बनाया गया है, जो स्थानीय लोगों एवं पर्यटकों के लिए एक जीवंत सांस्कृतिक स्थल है।

भूपेन हजारिका समाधि क्षेत्र:-

भूपेन हजारिका की पुण्यतिथि पर गुवाहाटी के जलुकबारी में उनका समाधि क्षेत्र है, जहां श्रद्धालु उन्हें याद करते हैं और सम्मानित करते हैं।

स्मारक सिक्का:-

उनकी जन्म शताब्दी के उपलक्ष्य में भारत सरकार ने 100 रुपये का विशेष स्मारक सिक्का जारी किया है, जो उनके प्रति कालजयी सम्मान को दर्शाता है।

उनके विचारों व गीतों में सामाजिक सुधार का संदेश:-

डॉ. भूपेन हजारिका के विचारों और गीतों में सामाजिक सुधार का संदेश गहराई से प्रवाहित होता है। उन्होंने अपने संगीत और गीतों के माध्यम से जाति, वर्ग, भाषा की सीमाओं को पार करते हुए समाज में शांति, एकता, भाईचारे और समानता का संदेश दिया। उनके गीत मानवता, धर्मनिरपेक्षता, और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देते हुए लोगों को भेदभाव, जात-पात, ऊंच-नीच, और अन्य सामाजिक असमानताओं के विरुद्ध जागरूक करते रहे।

उनके गीतों में साम्यवाद, जनचेतना, और समाज में व्याप्त अंधविश्वास, छुआछूत, और भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई गई है। वह अपने संगीत को सामाजिक परिवर्तन का एक माध्यम मानते थे तथा सामान्य जनों की दशा-दूरदशा को भावपूर्ण गीतों के जरिए समाज के सामने रखते थे। एक समान समाज के निर्माण के उनके सपने और सामाजिक एकता की अभिलाषा उनके गीतों में स्पष्ट झलकती है।

भूपेन हजारिका के विचार और गीत समाज में सुधार, समानता और मानवता के मूल्यों को उजागर करते हुए लोगों को जागरूक करने और जोड़ने का काम करते थे। उनके गीतों में सामाजिक सुधार का संदेश गहनता से निहित है, जो आज भी प्रेरणादायक है।

भूपेन हजारिका के आखिरी पल:-

भूपेन हजारिका का निधन 5 नवंबर 2011 को मुंबई के कोकिलाबेन धीरूभाई अंबानी अस्पताल में हुआ था। उनकी मौत शाम लगभग 4:37 बजे हुई। वे 86 वर्ष के थे। भूपेन हजारिका काफी लंबे समय से निमोनिया जैसी बीमारी से पीड़ित थे और उन्हें डायलासिस पर रखा गया था। उनकी हालत गंभीर थी क्योंकि उन्हें संक्रमण था और अगले समय में कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। उन्हें इलाज के लिए अस्पताल में रखा गया था, जहां 23 अक्टूबर को उनकी स्थिति और बिगड़ गई थी। उनकी एक मामूली सर्जरी भी की गई थी जिसमें डॉक्टरों ने उनके शरीर में एक खाद्य नलिका डाली थी। उनकी स्वास्थ्य स्थिति में सुधार नहीं हो पाया और इसी के कारण उनका निधन हो गया।

उनका पार्थिव शरीर गुवाहाटी में जजेस फील्ड में श्रद्धांजलि हेतु रखवाया गया था और 9 नवंबर 2011 को ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे गुवाहाटी विश्वविद्यालय के परिसर में उनकी अंतिम क्रिया संपन्न हुई। उनके निधन पर लाखों लोग शोक व्यक्त करने वहां उपस्थित थे और पूरा असम शोक में डूबा था, सभी सरकारी संस्थान और बाजार बंद थे।

निष्कर्ष:-

भूपेन हजारिका का जीवन संघर्ष, उनके सांस्कृतिक योगदान और असम की लोक-संगीत की दुनिया में उनका स्थान आज भी अमूल्य माना जाता है। भूपेन हजारिका के लिए कहा जा सकता है कि वे असम और भारत के एक बहुमुखी प्रतिभा कलाकार थे, जिन्होंने गीत लेखन, संगीत, गायकी, कविता, फिल्म निर्माण जैसे कई क्षेत्रों में उत्कृष्ट योगदान दिया। उनके गीतों में असम की लोक संस्कृति की खुशबू, सामाजिक चेतना और मानवता का भाव झलकता है। उन्होंने अपनी काम से न केवल असम के लोगों के दिल छूए, बल्कि पूरे भारत और दक्षिण एशिया में अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाई। भूपेन हजारिका को पद्मभूषण, दादा साहेब फाल्के पुरस्कार जैसी मान्यताएं मिलीं और मरणोपरांत भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो उनके अमूल्य योगदान का प्रतीक है। उनके गीत आज भी नए जनों को सामाजिक एकता, प्रेम और जागरूकता का संदेश देते हैं, इसलिए भूपेन हजारिका केवल एक संगीतकार नहीं बल्कि एक सामाजिक संदेशवाहक और सांस्कृतिक दूत थे।

World Homeless Day

विश्व बेघर दिवस विश्व बेघर दिवस की शुरुआत 10 अक्टूबर 2010 को हुई थी इसका उद्देश्य बेघरी और अपर्याप्त आवास जैसी समस्याओं पर जागरूकता लाना और...